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२६४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा किया। भेरी बजायी गयी पर कोई भी तैयार नहीं हुआ। अजातशत्रु ने नगर में प्रवेश किया और वैशाली का सर्वनाश कर दिया ।1
इस प्रकार जैन और बौद्ध दोनों परम्पराओं ने मगध विजय और वैशाली नष्ट होने का विवरण प्रस्तुत किया है। जैन दृष्टि से चेटक अठारह गण देशों का नायक था। बौद्ध परम्परा उसे केवल प्रतिपक्षी ही मानती है । जैन दृष्टि से कूणिक के पास तैतीस करोड़ सेना थी तो चेटक के पास सत्तावन करोड़ सेना थी । और दोनों ही युद्धों में एक करोड़ अस्सी लाख मानवों का संहार हुआ। बौद्ध दृष्टि से युद्ध का निमित्त है-रत्न राशि ! जैन परम्परा में जैसे चेटक का प्रहार अमोघ बताया है, वैसे ही बौद्ध ग्रन्थों की दृष्टि से वज्जी लोगों के प्रहार अचूक थे। नगर की रक्षा का मूल आधार जैन दृष्टि से स्तूप को माना है तो बौद्ध दृष्टि से पारस्परिक एकता, गुरुजनों का सम्मान आदि बताया गया है। जितना व्यवस्थित वर्णन जैन परम्परा में है, उतना बौद्ध परम्परा में नहीं हो पाया है। वैशाली की पराजय में दोनों ही परम्पराओं में छद्म भाव का उपयोग हुआ है । वैशाली का युद्ध कितने समय तक चला ? इस सम्बन्ध में जैन दृष्टि से एक पक्ष तक तो प्रत्यक्ष युद्ध हुआ और कुछ समय प्राकारभंग में लगा। बौद्ध दृष्टि से 'वस्सकार' तीन वर्ष तक वैशाली में रहा और लिच्छवियों में भेद उत्पन्न करता रहा। डा. राधाकुमुद मुखर्जी के अभिमतानुसार युद्ध की अवधि कम से कम सोलह वर्ष तक की है।
१ दीघनिकाय अट्ठकथा, खण्ड १, पृष्ठ ५२३ २ हिन्दू सभ्यता, पृष्ठ १८६
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