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________________ २६२ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा अपनी सूंड से हल्ल और विहल को नीचे उतार दिया और स्वयं अग्नि में प्रवेश हो गया। हाथी शुभ अध्यवसाय में आयु पूर्ण कर देव बना। देवप्रदत्त हार को देव उठाकर चल दिया। शासनदेव हल्ल और विहल्ल को महावीर के पास ले गये और वहां वे दोनों दीक्षित हुए।1 राजा चेटक ने आमरण अनशन कर सद्गति प्राप्त की। बौद्ध परम्परा में मगध विजय का प्रसंग इस प्रकार है-गंगा के एक पटटन के सन्निकट पर्वत में रत्नों की खान थी। 'अजातशत्र' और लिच्छवियों में यह समझौता हुआ था कि आधे-आधे रत्न परस्पर ले लेंगे। अजातशत्र ढीला था। आज या कल करते हुए वह समय पर नहीं पहुंचता । लिच्छवी सभी रत्न लेकर चले जाते । अनेक बार ऐसा होने से उसे बहुत ही क्रोध आया पर गणतन्त्र के साथ युद्ध कैसे किया जाय ? उनके बाण निष्फल नहीं जाते । यह सोचकर वह हर बार युद्ध का विचार स्थगित करता रहा, पर जब वह अत्यधिक परेशान हो गया, तब उसने मन ही मन निश्चय किया कि मैं वज्जियों का अवश्य ही विनाश करूंगा। उसने अपने महामन्त्री 'वस्सकार' को बुलाकर तथागत बुद्ध के पास भेजा। तथागत बुद्ध ने कहा- वज्जियों में सात बातें हैं---१. सन्निपातबहुल हैं अर्थात् वे अधिवेशन में सभी उपस्थित रहते हैं। २. उनमें एकमत है। जब सन्निपात भेरी बजती है तब वे चाहे जिस स्थिति में हों, सभी एक हो जाते हैं। ३. वज्जी अप्रज्ञप्त (अवैधानिक) बात को स्वीकार नहीं करते और वैधानिक बात का उच्छेद नहीं करते। ४. वज्जी वृद्ध व गुरुजनों का सत्कार-सम्मान करते हैं । १ भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति, पत्र १००-१०१ २ आचार्य भिक्ष , भिक्ष -ग्रन्थ रत्नकर, खण्ड २, पृष्ठ ८८ ३ बुद्धचर्या (पृष्ठ ४८४) के अनुसार "पर्वत के पास बहुमूल्य सुगन्ध वाला माल उतरता था।" ४ दीघनिकाय अट्ठकथा (सु मंगल विलासिनी), खण्ड २ पृ. ५२६, Dr. B. C. Law : Buddhaghosa, p. 111, हिन्दू सभ्यता, पृष्ठ १८८ ५ दीघनिकाय, महापरिनिव्वाणसुत्त, २/३ (१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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