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________________ विविध कथाएँ २६१ लिच्छवी-इन अठारह काशी कौशल के गणराजाओं की पराजय हुई और कूणिक की विजय हुई। राजा चेटक पराजित होकर वैशाली में चला गया। नगर के द्वार बन्द कर दिये गये । कूणिक ने प्राकार तोड़ने का बहुत प्रयास किया पर सफल न हो सका । उसने वैशाली के बाहर सेना का घेरा डाल दिया। एक दिन उसे आकाशवाणी सुनाई दी-श्रमण कूलबालक जब मागधिका वेश्या में अनुरक्त होगा तब कूणिक (अशोकचन्द्र) वैशाली नगरी का अधिग्रहण करेगा। कूणिक ने कुलवालक की खोज की। मागधिका वेश्या को बुलाया गया। मागधिका ने कपट से श्राविका का रूप बनाकर कूलबालक को अपने में अनुरक्त किया । कूलबालक नैमित्तिक वेष को धारण कर किसी तरह वैशाली पहुंचा । उसे ज्ञात था कि मुनि सुव्रतस्वामी के स्तूप के कारण ही यह नगरी बची हुई है । नागरिकों ने नैमित्तिक समझकर उससे उपाय पूछा। नैमित्तिक वेशधारी कुलबालक ने नागरिकों को बतायास्तूप के कारण ही शत्रु तुम्हें परेशान कर रहे हैं । यदि स्तूप टूट जायेगा तो शत्र यहां से भाग जायेंगे। लोगों ने स्तूप तोड़ना प्रारम्भ किया । कूलबालक के संकेतानुसार कूणिक की सेना पीछे हटी और जब स्तूप पूर्ण रूप से टूट गया तो कूणिक ने एकाएक आक्रमण कर वैशाली के प्राकार को नष्ट कर दिया। शत्रु से बचने के लिए हल्ल और विहल्ल कुमार हार तथा हाथी को लेकर चले, किन्तु खाई में प्रच्छन्न रूप से आग थी। सेचनक हाथी को विभंगज्ञान से आग का पता लग गया था, अतः वह आगे नहीं बढ़ रहा था । उसको बलात् आगे बढ़ने के लिए उत्प्रेरित किया गया तो उसने हुआ। १ भगवती, शतक ७, उद्देशक ६, सूत्र ३०१ २ 'कूलबालुक' तपस्वी नदी के कूल के समीप आतापना लेता था। उसके तपः प्रभाव से नदी का प्रवाह थोड़ा मुड़ गया। उससे उसका नाम 'कूलबालुक' -उत्तराध्ययन सूत्र, लक्ष्मीवल्लभ कृत वृत्ति, (गुजराती अनुवाद सहित), अहमदाबाद, १६३५, प्रथम खण्ड, पत्र ८ ३ समणे जह कूलवालए, मागहिरं गणिभं रमिस्सए । राया अ असोगचंदए, वेसालि नगरी गहिस्सए ॥ -वही, पत्र १० ४ उत्तराध्ययन सूत्र, लक्ष्मीवल्लभ कृत वृत्ति, पत्र ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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