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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
महावीर से प्रश्न किया-कालकुमार आदि जीवित रहेंगे या मृत्यु का वरण करेंगे? भगवान् ने प्रत्युत्तर में कहा-वे सभी मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैं। दसों रानियों ने दीक्षा ग्रहण की। (निरयावलिका १-१०) महाशिलाकंटक संग्राम
महाशिलाकंटक-संग्राम का निरूपण भगवती (श० ७ उ०६) में हुआ है। बौद्ध ग्रन्थ 'दीघनिकाय' के महापरिनिव्वाणसुत्त तथा उसकी 'अट्ठकथा' में 'वज्जी-विजय कहा है। युद्ध का कारण, उसकी प्रक्रिया
और उसकी निष्पत्ति परम्परा को पृथकता से भिन्न-भिन्न रूप में मिलती है। पर यह स्पष्ट है कि मगध की वैशाली गणतन्त्र पर विजय हुई थी। इस युद्ध के समय भगवान महावीर और तथागत बुद्ध ये दोनों विद्यमान थे। दोनों से यद्ध के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे गये। दोनों ने उनके उत्तर दिये । इस यद्ध के वर्णन से उस समय की राजनैतिक स्थितियों का भी परिज्ञान होता है।
यह हम पूर्व ही लिख चुके हैं-राजा कूणिक के सेनापति राजा चेटक के अमोघ बाण से मर रहे थे। राजा कूणिक को लगा-अब मेरी पराजय निश्चित है। उसने तीन दिन का उपवास करके शकेन्द्र और चमरेन्द्र की आराधना की। वे दोनों इन्द्र प्रकट हुए। उनके सहयोग से पहले दिन महाशिलाकंटक संग्राम की योजना हुई। शक्रन्द्र द्वारा निर्मित अभेद्य वज्र रूप कवच को कूणिक ने धारण किया, जिससे राजा चेटक का अमोघ बाण उसे मार न सका। परस्पर भयंकर युद्ध हुआ। कूणिक की सेना के द्वारा राजा चेटक की सेना पर कंकड़, तण, पत्र आदि जो कुछ भी डाला जाता, वह महाशिला की तरह प्रहार करता। उस प्रथम दिन के युद्ध में ही चौरासी लाख मानव मारे गये। द्वितीय दिन रथमूसल संग्राम की विकुर्वणा हुई । देव निर्मित रथ पर चमरेन्द्र स्वयं आसीन हुआ तथा मूसल से चारों ओर प्रहार करने लगा। दूसरे दिन में छियानवे लाख मानवों का संहार हुआ। इस प्रकार दो दिन के संग्राम में 'एक करोड अस्सी लाख' मानवों का विनाश हुआ। चेटक तथा नौ मल्लवी और
१. भगवती सूत्र, सटीक, सूत्र २६६, पत्र ५७८ २. भगवती सूत्र, सटीक शतक ७, उद्दे० ६, सूत्र ३००, पृ० ५८४
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