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विविध कथाएँ
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मुझे मारने के लिए आ रहा है । यह मुझे बुरी तरह से मारेगा इससे तो यही श्रेयस्कर है कि मैं स्वयं ही प्राणों का अन्त कर लूं। श्रोणिक ने उसी समय तालपुट विष खाकर अपने प्राणों का अन्त किया।1।।
बौद्ध ग्रन्थों में बताया है-धूमगृह में कोशलदेवी के अतिरिक्त कोई भी नहीं जा सकता था। अजातशत्रु अपने पिता को भूखा और प्यासा रख कर मरवाना चाहता था, क्योंकि देवदत्त ने अजातशत्रु को कहा था-पिता को शस्त्र से न मारें, किन्तु भूखे और प्यासे रखकर मारें। जब कोशलदेवी राजा से मिलने जातो तो उत्संग में भोजन छिपाकर ले जाती और राजा को दे देती। अजातशत्रु को ज्ञात होने पर उसने कर्मकरों से कहा-मेरी माता को उत्संग बांध कर मत जाने दो। तब महारानी जूड़े में भोजन छिपाकर ले जाने लगी। उसका भी निषेध हुआ। तब वह स्वर्ण पाटुका में छिपाकर भोजन ले जाने लगी। जब उसका भी निषेध किया गया तो महारानी गंदोदक से स्नान कर शरीर पर मधु का लेप कर राजा के पास जाने लगी। उसके शरीर को चाटकर राजा कुछ दिन तक जीवित रहा। अन्त में अजातशत्रु ने माता को भी धूमगृह में जाने का निषेध किया।
राजा श्रोणिक अब श्रोतापत्ति के सुख पर जीने लगा। अजातशत्रु ने देखा-राजा मर नहीं रहा है इसलिए नाई को बुलाकर कहा- मेरे पिता राजा के पैरों को तुम पहले शस्त्र से छील दो, उस पर नमक युक्त तेल का लेपन करो और फिर खैर के अंगारे मे उस पर सिकताब करो? नापित ने वैसा ही किया, जिससे राजा मर गया।
जैन परम्परा की दृष्टि से माता से पिता के प्रेम की बात को सुनकर कूणिक के मन में पिता की मृत्यु से पूर्व ही पश्चात्ताप हो गया था । जब कूणिक ने देखा-पिता ने आत्महत्या करली है तो वह मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ समय के बाद जब उसे होश आया तो वह फूटफूट कर रोने लगा-- मैं कितना पुण्यहीन हूँ, मैंने अपने पूज्य पिता को
१ (क) जेणंतरेण ताला संपुडिज्जति तेणंतरेण मारयतीति तालपुडं
-दशवकालिक चूणि ८, २६२ (ख) छह प्रकार का विषपरिणाम बताया है-दृष्ट, भुक्त, निपतित, मांसानुसारी, शोणितानुसारी, सहस्रानुपाती।
- स्थानांग सूत्र, पृष्ठ ३५५ अ.
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