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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
मित्र मनुष्य बना और अवशेष मानवों के जीव नरक और तिर्यंच योनि में पैदा हुए।
गणधर गौतम ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की-देवेन्द्र शक्र ने और असुरकुमार चमरेन्द्र ने कोणिक-राजा को किस कारण से सहायता प्रदान की ? भगवान् ने कहा-देवेन्द्र देवराज शक तो कोणिक राजा का 'कार्तिक' सेठ के भव में मित्र था और असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर कोणिक राजा का 'पूरण' नामक तापस की अवस्था का साथी था। इसीलिए इन दोनों इन्द्रों ने कोणिक की सहायता की।
(भगवती शतक ७, उद्देशक ६) रथ-मूसल संग्राम में काल आदि कुमारों की मृत्यु
राजगृह में राजा श्रोणिक का राज्य था। उसकी रानी चेलना से 'कूणिक' का जन्म हआ। श्रेणिक की दसरी रानी काली से 'काल' नामक राजकुमार का जन्म हुआ। एक बार काल कूणिक के साथ रथ-मूसलसंग्राम में पहुँचा। उस समय भगवान् महावीर चम्पानगरी में पधारे । काली महारानी ने भगवान से प्रश्न किया- -भगवन् ! मेरे पुत्र काल की युद्ध में विजय होगी या पराजय ? महावीर ने कहा-तेरा पुत्र रथ-सूसल संग्राम में वैशाली के राजा चेटक के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होगा। तू उसे देख नहीं सकेगी।
राजगृह नगर में राजा श्रोणिक का राज्य था। उसकी नन्दा रानी से 'अभयकुमार' का जन्म हुआ। श्रेणिक की रानी चेलना को अपने पति के उदर के मांस को खाने का दोहद पैदा हुआ । दोहद पूर्ण न होने से वह उदास रहने लगी । अंग परिचारिकाओं से राजा श्रेणिक को ज्ञात हुआ। अभयकुमार के पूछने पर राजा ने सारा वृत्तान्त सुनाया। अभयकुमार ने विश्वस्त अनुचर को भेज कर मांस रुधिर मंगवाकर राजा श्रेणिक के उदर पर रखवा दिया। इस तरह वस्त्र से आच्छादित कर दिया कि जिससे ज्ञात नहीं हो सके । दूर प्रासाद में बैठी हुई महारानी चेलना सब देखती रही। अभयकुमार ने माँस काटने का बहाना किया और राजा को मूच्छित स्थिति में बताकर महारानी चेलना का दोहद पूर्ण किया। बौद्ध परम्परा के अनुसार वैद्य ने राजा की बाह का रक्त निकलवाकर दोहद की पूर्ति की । रानी को ज्योतिषी ने बताया कि यह पुत्र पिता को मारने वाला होगा । इसलिए रानी उसे नष्ट करने का प्रयत्न करती है । चेलना के मन
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