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विविध कथाएँ २८१ भगवान् महावीर से यह रहस्य कब छिप सकता था? उन्होंने अपने दिव्य ज्ञान-बल से श्रमण-श्रमणियों के निदान की बात जानी । उन्हें निदान के दुष्परिणाम से परिचित कराया। श्रमण-श्रमणियों ने अपने दुःसंकल्प को आलोचना की। प्रस्तुत कथानक से यह स्पष्ट है कि श्रेणिक को भगवान् महावीर के प्रति अपूर्व भक्ति थी। साथ ही इस बात का भी संकेत मिलता है कि वह प्रथम बार भगवान् महावीर के पास गया था। जन परम्परा की दृष्टि से श्रेणिक पहले अन्य धर्मावलम्बी था। चेलना तो पितृपक्ष में भी निर्ग्रन्थ धर्म को मानने वाली थी। उसके प्रयत्न से ही सम्राट श्रेणिक निर्ग्रन्थ धर्म का उपासक एवं जैन बना था। सम्भव है, इसीलिए चेलना को आगे किया हो ! (दशाश्रु त स्कन्ध १०)
श्रमण और श्रमणियों ने जो निदान करने का सोचा, वह प्रथम सम्पर्क में ही सम्भव है । बार-बार मिलने के पश्चात् वह भावना नहीं हो सकती।
रथ-मूसल संग्राम गणधर गौतम ने भगवान महावीर से जिज्ञासा प्रस्तुत की-रथमूसल संग्राम क्या है ? उसमें कौन जीता और कौन हारा ?
__ भगवान महावीर ने समाधान करते हुए कहा-इस युद्ध में इन्द्र, असुरेन्द्र, असुरकुमार, चमरेन्द्र ये जीते थे और नौ मल्लबी, नौ लिच्छवी ये राजा-गण पराजित हुए थे। कोणिक भूतानन्द नामक पट्टहस्ती पर आसीन होकर रथमूसल संग्राम में आया था। उसके आगे देवराज शक्र थे, उसके पीछे असुरकुमारराज चमर थे। लोहे से निर्मित एक विशिष्ट प्रकार के कवच की विकुर्वणा की । इस युद्ध में देवेन्द्र, मनुजेन्द्र और असुरेन्द्र ये तीन इन्द्र एक साथ युद्ध कर रहे थे । गौतम ने पुनः जिज्ञासा की-भगवन् ! इस संग्राम को रथ-मूसल संग्राम क्यों कहा? भगवान् ने उत्तर दिया-जिस समय यह संग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथोरहित, योद्धारहित और मूसलसहित रथ अत्यन्त जन-संहार, जन वध, जन-मर्दन और रक्त से भूम को रञ्जित करता हुआ चारों ओर दौड़ रहा था। इसीलिए उसे 'रथ-मूसल' संग्राम कहा है । उस संग्राम में छियानवें लाख योद्धा मारे गए । उनमें से दस हजार योद्धाओं के जीव एक मछली के उदर में पैदा हुए । उनमें से एक वरुणनागनप्तृक देवलोक में उत्पन्न हुआ । उसका बाल
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