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विविध कथाएँ (प्रकीर्णक कथाएँ)
श्रमण-श्रमणियों का निदान
पूर्व पृष्ठों में हमने अनाथी मुनि के द्वारा सम्राट श्र ेणिक को प्रतिबोध प्राप्त हुआ था, यह उल्लेख किया है । यहाँ पर भगवान् महावीर का साक्षात् सम्पर्क और उनके प्रति असाधारण श्रद्धा का प्रतिपादन किया है ।
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महाराजा श्रोणिक ने कौटुम्बिक ( राजकर्मचारी) पुरुषों को बुलाकर यह आदेश दिया - राजगृह नगर के बाहर जितने भी आराम, उद्यान, शिल्प- शालायें, आयतन, देवकुल, सभायें प्रपायें, उदकशालायें, पान्थशालायें, भोजनशालायें, चूने के भट्टे, व्यापार की मंडियां, लकड़ी आदि के ठेके, मूंज आदि के कारखाने आदि के जो अध्यक्ष हैं उनसे जाकर कहो - जब श्रमण भगवान् महावीर इस नगर में पधारें; तुम लोग स्थान, शयनासन आदि ग्रहण करने की आज्ञा दो और उनके पधारने का संवाद मेरे तक पहुँचाओ | कौटुम्बिक पुरुषों ने ऐसा ही किया ।
भगवान् महावीर का जब राजगृह में पर्दापण हुआ, तब राजा श्रेणिक को सूचना दी। तब राजा श्रेणिक बहुत ही हर्षित हुआ तथा संवाददाताओं को पारितोषिक दिया। महाराणी चेलना के साथ स्नानादि से निवृत्त हो बहुमूल्य वस्त्राभूषण धारण कर राजा श्रेणिक भगवान् की धर्म-सभा में पहुँचा । भगवान् महावीर ने धर्मोपदेश दिया। परिषद् विस जित हुई । श्रोणिक की दिव्य ऋद्धि को देखकर कितने ही श्रमणों के मन में विचार आया- धन्य है यह श्रेणिक बिम्बसार ! जो चेलना जैसी रानी और मगध जैसे राज्य का उपभोग कर रहा है। हमारी भी तपःसाधना का फल हो तो हम भी इसी प्रकार के मनोरम कामभोगों को प्राप्त करें । चेलना की दिव्य ऋद्धि देखकर कितनी ही श्रमणियों के मन में यह विचार आया कि हम भी चलना की तरह ही कामभोगों का उपभोग करें ।
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