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________________ २७८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा स्थविरों ने सोचा-यदि हम गौशालक के कथनानुसार करेंगे तो हमारी और हमारे धर्माचार्य की प्रतिष्ठा धूल में मिल जायेगी । यदि उसके कथन की उपेक्षा करेंगे तो गुरु-आज्ञा का भंग होगा। यह सोचकर उन्होंने कुम्भकारापण को बन्द कर आंगन में श्रावस्ती का चित्र बनाया तथा गौशालक के कथनानुसार सारा कार्य किया। उसके बाद गौशालक के प्रथम आदेश के अनुसार उसकी अर्चा की और धूमधाम से उसकी शवयात्रा निकाली तथा अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया। इस तरह हे गौतम ! मेरा कुशिष्य गौशालक जीवन के अन्तिम क्षणों में प्रशस्त भावना के कारण बारहवें देवलोक अच्युत कल्प में देव बना। वहाँ से च्यूत होकर अनेक भवों में परिभ्रमण करते हुए इसे सम्यक्त्व की उपलब्धि होगी और दृढ़प्रतिज के वली बनकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा। इस प्रकार प्रस्तुत कथानक में गौशालक का व्यवस्थित जीवन-चरित्र दिया गया है। अनुसंधानकर्ताओं को इसमें विपुल सामग्री प्राप्त होगी। गौशालक निह्नव नहीं था, मिथ्यात्वी था। भगवती के अतिरिक्त आगम के व्याख्या साहित्य में उसके अमानवीय कृत्यों की लम्बी सूची दी गई है । गौशालक ने अपने लौकिक प्रभाव से जन-मानस को आकर्षित किया था। कितने ही महानुभाव यह शंका उपस्थित करते हैं--भगवान् महावीर ने छद्मस्थ अवस्था में गौशालक की रक्षा की जबकि समवसरण में गौशालक ने तेजोलेश्या से सर्वानुभूति और सुनक्षत्र मुनि पर प्रहार किया, तब महावीर ने उन्हें क्यों नहीं बचाया ? टीकाकार ने स्पष्ट किया हैभगवान उस समय वीतरागी थे। वे जानते थे उसके निमित्त से मुनियों का मरण है । केवली अवस्था में लब्धि का प्रयोग नहीं करते । छद्मस्थ अवस्था में अनुकम्पा से उन्होंने गौशालक को बचाया था। कितने ही लोगों का यह भी मानना है कि गौशालक पर अनुकम्पा दिखाकर भगवान् महावीर ने भूल की । यदि भगवान ऐसा नहीं करते तो कुमत का प्रचार नहीं होता और न मुनि-हत्या ही होती। पर उन्हें यह सोचना चाहिए कि महापुरुष बिना भेद-भाव के सभी का उपकार करते हैं। प्रतिफल की कामना से वे कभी भी सौदेबाजी नहीं करते । भगवान ने छद्मस्थ अवस्था में ऐसा कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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