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निह्नव कथाएँ
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के लिए व्यवहार योग्य है जैसे १. स्थाल पानी से आर्द्र हुए ठण्डे छोटे-बड़े बर्तन-इन्हें हाथ से स्पर्श करे, किन्तु पानी न पीए। २. त्वचा पानीआम, गुठली और बेर आदि कच्चे फल मूह में चबाना परन्तु उसका रस नहीं पीना । ३. फलों का पानी-उड़द, मूग, मटर आदि को कच्ची फलियाँ मुंह में लेकर चबाना परन्तु उसका रस नहीं पीना। ४. शुद्ध पानी।
श्रावस्ती में 'अयंपुल' आजोवकोपासक था। उसे 'हल्ला' वनस्पति के आकार के सम्बन्ध में जिज्ञासा हुई। वह रात्रि में ही गौशालक के पास पहुँचा । उस समय गौशालक मद्यपान किये हुए हँस रहा था और नाच रहा था। वह लज्जित होकर पुनः लौटने लगा। गौशालक ने स्थविरों को भेजकर उसे बुलाया और कहा-तुम मेरे पास आये हो, पर मेरी यह स्थिति देखकर लौटना चाहते थे किन्तु मेरे हाथ में कच्चा आम नहीं, आम की छाल है । निर्वाण के समय इसका पीना आवश्यक है। निर्वाण के समय नृत्य, गीत आदि भी आवश्यक हैं, अतः तुम भी वीणा बजाओ।
गौशालक को लगा कि अब मैं लम्बे समय का मेहमान नहीं हूँ, अतः उसने अपने स्थविरों को बुलाकर कहा-यदि मेरी मृत्यु आ जाय तो मेरे शरीर को सुगन्धित पानी से नहलाना, गेरुक वस्त्र से शरीर को पौंछना, गोशीर्ष चन्दन का लेप करना, बहमूल्य श्वेत वस्त्र धारण करवाना और सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित करना । एक हजार व्यक्ति उठा सकें, ऐसी शिविका में बैठाकर यह उद्घोषणा करना-चौबीसवें तीर्थंकर मंखलि पुत्र गौशालक सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये है।
सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी। उसका मिथ्यात्व नष्ट हुआ और सम्यक्त्व की उपलब्धि हुई । गौशालक को अपने दुष्कृत्य पर पश्चाताप हुआ। मैं जिन नहीं हूँ किन्तु जिन होने का मैंने दावा किया । अपने धर्माचार्य से द्वष किया और श्रमणों की हत्या की। यह मैंने भयंकर भूल की। उसी समय स्थविरों को बुलाकर गौशालक ने कहा-मेरी भयंकर भूलें हुई हैं, इसीलिए मेरी मृत्यु के बाद मेरे बांये पैर में रस्सो बाँधना और मेरे मुह में तीन बार थूकना । श्रावस्ती के राजमार्गों पर से मुझे ले जाते हुए यह उद्घोषणा करना-गौशालक जिन नहीं, भगवान् महावीर ही जिन हैं । मरे हए कूत्त की तरह मुझे घसीट कर ले जाना। उसने स्थविरों की शपथ दिलाई और उसी रात्रि में गौशालक की मृत्यु हो गई।
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