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________________ २७२ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा बनना चाहता था, किन्तु जब उसे गणधर पद नहीं मिला तो वह पृथक हो कर श्रावस्ती में आया और अपने आपको 'तीर्थंकर' कहने लगा। डा० वेणीमाधव बरुवा ने लिखा है-यह तो कहा ही जा सकता है कि जैन और बौद्ध परम्परा में मिलने वाली जानकारी से यह प्रमाणित नहीं हो सकता कि जैसे-जैन गौशालक को महावीर के दो ढोंगी शिष्यों में से एक शिष्य बताते हैं। प्रत्युत उन जानकारियों से विपरीत यह प्रमाणित होता है- उन दोनों में एक दूसरे का कोई ऋणी है तो वस्तुतः गूरु ही ऋणी है न कि जैनियों के द्वारा माना गया उनका ढोंगी शिष्य । डा० बरुवा आगे लिखते हैं-भगवान महावीर पहले पार्श्वनाथ की परम्परा में थे, किन्तु एक वर्ष के पश्चात् जब वे अचेलक हुए तब आजीवक पन्थ में चले गये । गौशालक भगवान् महावीर से दो वर्ष पूर्व जिन पद प्राप्त कर चुके थे। डा०बरुवा यह स्वीकार करते हैं कि ये सभी कल्पना के ही महान प्रयोग कहे जा सकते हैं तथापि इन कल्पनाओं ने गोपालदास जीवाभाई पटेल, धर्मानन्द कौशाम्बी आदि को भी प्रभावित किया। इस मान्यता के मुल सर्जक डा० हरमन जैकोबी रहे हैं। उसी का अनुसरण करते हुए डा. वाशम ने अपने महानिबन्ध 'आजीविकों का इतिहास और सिद्धान्त' में विस्तार से प्रकाश डाला है। इस मूल मनोवृत्ति का आधार-किसी भी पाश्चात्य विचारक ने जो कुछ भी लिख दिया है वही सही है, यह भ्रान्त धारणा है । जो भी मूर्धन्य मनीषी गौशालक के सम्बन्ध में लिखते हैं, उन का मूल आधार जन और बौद्ध ग्रन्थ ही हैं। उनमें से कितनी ही बातों को सही और कितनी ही बातों को गलत मानना, यह ऐतिहासिक दृष्टि नहीं हो सकती। जो तथ्य जैन साहित्य में दिये गये हैं उन तथ्यों को बौद्ध १ मसयरि पुरणारिसिणो उप्पण्णो पासणाहतित्थम्मि । सिरिवीर समवसरणे अगहियझुणिया नियत्तेण ॥ -भावसंग्रह गा. १७६ २ The Ajivikas, J. D. L. Vol. II, 1920, PP. 17-18 ३ The Ajivikas, J. D. L. Vol. II, 1920, P. 18. ४ The Ajivikas, J. D. L. Vol. II, 1920, P. 21. ५ महावीर स्वामीनो संयमधर्म [सूत्रकृतांग का गुजराती अनुवाद, पृष्ठ ३४. : ६ s. B. E. Vol. XLV, Introduction, pp. XXIX To XXXII. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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