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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
आचार्य ने कहा-अब भयभीत होने की आवश्यकता नहीं। मैं तुझे इन सातों विद्याओं की प्रतिपक्षी विद्या बता देता हूँ। रोहगुप्त को मायूरी, नाकूली, विडाली, व्याघ्री, सिंही, अलूकी और उलावकी ये सात विद्यायें सिखाई। साथ ही रजोहरण को अभिमन्त्रित कर कहा-तू इन सात विद्याओं से उसको पराजित कर सकेगा। यदि इन विद्याओं के अतिरिक्त अन्य किसी विद्या की आवश्यकता हो तो रजोहरण को घुमाना, जिससे कोई भी शक्ति तुझे पराजित नहीं कर सके।
___ गुरुदेव के आशीर्वाद को लेकर रोहगुप्त राज-सभा में पहुँचा। पोट्टशाल भी उधर से आया। पोट्टशाल ने अपने पक्ष की संस्थापना करते हुए कहा-राशि दो हैं-जीव राशि और अजीव राशि । रोहगुप्त ने कहा-राशि तीन हैं-जीव, अजीव और नोजीव । घट-पट आदि अजीव हैं, मनुष्य, तिथंच, नारक आदि जीव हैं, छिपकली की कटी हुई पूछ नोजीव है।
पोट्टशाल को विविध युक्तियों से उसने पराजित कर दिया।
रोहगुप्त से पराजित होकर पोट्टशाल अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसने विद्याओं का प्रयोग किया। प्रतिपक्षी विद्याओं से उनकी सारी विद्याएँ विफल हो गई। अन्त में परिव्राजक ने गर्दभीविद्या का प्रयोग किया। रोह. गुप्त ने आचार्य द्वारा दिये गये अभिमंत्रित रजोहरण से उस विद्या को भी निष्फल कर दिया। सभी सभासदों ने पोटशाल परिव्राजक को पराजित घोषित कर दिया।
विजय प्राप्त कर रोहगुप्त आचार्य के पास आया और सम्पूर्ण वृत्त से उन्हें परिचित किया। आचार्य ने उपालम्भ देते हुए कहा-तेने असत्य प्ररूपणा की है। राशि तीन नहीं, दो ही हैं । अभी भी समय है। राजसभा में जाकर अपनी भूल स्वीकार करो। पर रोहगुप्त अपनी भूल स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुआ। उसे तो अपनी प्रज्ञा पर अहंकार था। आचार्य ने विविध रूपकों के द्वारा उसे समझाया, पर जब वह बिल्कल ही अपनी मिथ्या बात को स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत नहीं हआ तो आचार्य को लगा-यह स्वयं तो भ्रष्ट हआ ही है, दूसरों को भी भ्रष्ट करेगा। इस लिए राज-सभा में जाकर में इसका निग्रह करू । आचार्य राजसभा में पहँचे और राजा बलश्री से कहा-मेरे शिष्य रोहगुप्त ने विपरीत तथ्य की स्थापना की है। हम जैनी दो ही राशि मानते हैं । पर वह अहंकार से
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