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________________ २५८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा श्रमण भगवान महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के चौदहवें वर्ष से निर्वाण के पश्चात् पाँच सौ चौरासी वर्ष तक का है।1।। जमालि निन्हव भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के चौदह वर्ष पश्चात् श्रावस्ती में बहरतवाद की उत्पत्ति हई। इस मत के संस्थापक जमालि थे। वे कुण्डपुर के रहने वाले थे । भगवान् महावीर की बड़ी बहन सुदर्शना उनकी माँ थीं और भगवान महावीर की पुत्री प्रियदर्शना के साथ जमालि का पाणिग्रहण हआ था। जमालि ने पांच सौ पुरुषों के साथ भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की और उनकी पत्नी प्रियदर्शना भी हजार महिलाओं के साथ दीक्षित हुई। जमालि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। विविध प्रकार की वे तपस्यायें करने लगे। एक बार पृथक विहार की उन्होंने भगवान से अनुमति मांगी किन्तु प्रभु मौन रहे। वे अपने पांच सौ निर्ग्रन्थों के साथ पृथक विहार करने लगे। विहार करते हुए वे श्रावस्ती पहुँचे । तिन्दुक उद्यान के कोष्ठक चैत्य में विराजे । तप से उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया था तथा पित्त ज्वर से शरीर जलने लगा । वे बैठने में असमर्थ हो गये । एक दिन तीव्रतम वेदना से पीड़ित होकर उन्होंने श्रमणों को आदेश दिया-बिछौना करो। पित्तज्वर की वेदना से एक-एक पल उन्हें बहुत ही भारी लग रहा था। उन्होंने पूछा-बिछौना कर लिया है अथवा किया जा रहा है ? श्रमणों ने कहा-बिछौना किया नहीं, किया जा रहा है । यह सुनकर जमालि के मन में विचिकित्सा हुई-भगवान् महावीर क्रियमाण १. आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७८३, ७८४. २. चउदसवासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्सा । तो बहुरयाणदिट्ठी सावत्थीए समुप्पन्ना। -आवश्यकभाष्य, गाथा १२५ ३. आचार्य मलयगिरि ने घटनाक्रम और सिद्धान्त पक्ष का जो निरूपण किया है, वह भगवती के निरूपण से जरा पृथक है । उनकी दृष्टि से जमाली ने श्रमणों से पूछा-बिछौना किया या नहीं ? श्रमणों ने कहा- कर लिया। जमालि ने उठकर देखा कि बिछौना अभी पूरा नहीं किया गया है, वह क्रुद्ध हो उठा। उसने चिन्तन किया-क्रियमाण को कृत कहना मिथ्या हैं। अर्द्धसंस्तृत संस्तारक असंस्तृत ही है । उसे संस्तृत नहीं माना जा सकता। -देखें, आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, पत्र ४०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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