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________________ निहव कथाएँ प्रवचन निह्नव आगम साहित्य में श्रमणोपासकों की कथाएँ यत्र-तत्र विकोण रूप में भी आती हैं और उपासकदशांग में दस प्रमुख श्रमणोपासकों की कथाएँ हैं । इन कथाओं में भी कथातत्व (घटनाक्रम) अधिक नहीं है, किन्तु उनकी अध्यात्मसाधना का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। साधना की अखण्ड सम्पन्नता ही इनकी प्रेरणा है। जैन साहित्य में विशेषकर आगमोत्तरकालीन साहित्य में निन्हवों की कथा भी प्रसिद्ध हैं। स्थानांग सूत्र में प्रवचन निह्नव सात बताये हैं१. जमालि २. तिष्यगुप्त ३. आषाढ़ ४. अश्व मित्र ५. गंग ६. रोहगुप्त और ७. गोष्ठामाहिल । इन सातों ने क्रमशः बहुरत, जीवप्रादेशिक, अव्यक्तिक, समुच्छेदिक, वैक्रिय, त्रैराशिक और अबद्धिक मत की संस्थापना की थी। निह्नव कौन सुदीर्घकालीन परम्परा में विचार-भेद होना अस्वाभाविक नहीं है। जैन परम्परा में भी इस प्रकार विचार-भेद के उल्लेख प्राप्त हैं। जिन श्रमणों ने जैन परम्परा का परित्याग कर अन्य धर्म को स्वीकार कर लिया, उन्हें निह्नव नहीं कहा है। निह्नव वे हैं, जिनका वर्तमान परम्परा के साथ मतभेद हुआ किन्तु उन्होंने किसी अन्य मत को स्वीकार नहीं किया। जैनशासन में रहकर ही किसी एक विषय का अपलाप करने वाले निह्नव की अभिधा से अभिहित किये गये हैं । सप्त निह्नवों में से दो निह्नव भगवान् महावीर को कैवल्य-प्राप्ति के पश्चात् हुए और शेष पाँच भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए 11 निह्नवों का अस्तित्व काल १. णाणुप्पत्तीय दुवे, उप्पण्णा णिव्वुए सेसा । -आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७८४ ( २५७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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