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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
रह करके ही जीवन के अन्त में संथारा कर अरुणाभ विमान में देव बनेगा।
प्रस्तुत कथानक में मद्रक श्रमणोपासक का गम्भीर ज्ञान उजागर हुआ है । श्रमणोपासक बनना ही पर्याप्त नहीं है, श्रमणोपासकों को तत्त्वों का परिज्ञान होना भी आवश्यक है, जिससे वे अन्य दार्शनिकों के आक्षेपों का परिहार कर सकें । अन्य श्रमणोपासक भी इस दृष्टि से आगे बढ़ें, उन्हें भी प्रेरणा प्राप्त हो; इसलिए भगवान् महावीर ने अपनी भरी सभा में मद्रुक की प्रशंसा कर अन्य को प्रेरणा दी । आधुनिक युग के श्रमणोपासक भी मद्रक के जीवन से प्रेरणा लें और वे तत्त्वदर्शन का गहन अभ्यास कर जैन धर्म की प्रबल प्रभावना करें।
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