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२५४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
स्थानांग में जो अम्बड परिव्राजक है, उसने भगवान् महावीर का चम्पा नगरी में धर्मोपदेश श्रवण किया। वहाँ से वह राजगृही की ओर प्रस्थित होने लगा तब भगवान् के अम्बड से कहा-श्राविका सुलसा को कुशम समाचार कहना। अम्बड सोचने लगा-वह महान् पूण्यवती है, जिसे भगवान स्वयं कुशल समाचार प्रोषित कर रहे हैं। सुलसा में ऐसा कौन सा गुण है ? मैं उसके सम्यक्त्व की परीक्षा लेगा।
परिव्राजक के वेष में ही अम्बड सुलसा के वहां पहुंचा और बोलाआयूष्मती ! मुझे आहार-दान दो। तुम्हें धर्म होगा। सुलसा ने कहाकिसको देने में धर्म है, यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। अम्बड आकाश में पद्मासन की मुद्रा में स्थित होकर जन-जन के मानस को विस्मित करने लगा। लोगों ने भोजन के लिए उसे निमन्त्रण दिया। उसने किसी का भी निमन्त्रण स्वीकार नहीं किया और कहा-मैं सुलसा के यहाँ पर ही भोजन ग्रहण करूंगा। लोग हर्ष से विभोर होकर बधाइयां देने के लिए पहुँचे । सुलसा ने कहा- मुझे पाखण्डियों से कुछ भी लेना-देना नहीं है । लोगों ने सुलसा की बात अम्बड से कह दी। अम्बड ने कहा-वह विशुद्ध सम्यग्दर्शन की धारिका है, उसके अन्तर्मानस में किंचित् मात्र भी व्यामोह नहीं है । वह स्वयं सुलसा के वहां पर गया, सुलसा ने उसका स्वागत किया उससे वह प्रतिबुद्ध हुआ।
(औपपातिक सूत्र ३६-४०) दीघनिकाय के अम्बडसुत्त में अम्बड नाम के एक पण्डित ब्राह्मण का वर्णन है । निशीथचूर्णि पीठिका में प्रसंग है-भगवान् महावीर अम्बड को धर्म में स्थिर करने के लिए राजगृह पधारे थे ।। मद्रक श्रमणोपासक
भगवती सूत्र शतक १८ उद्देशक ७ में मद्रक श्रमणोपासक का वर्णन है । राजगृह के गुणशीलक उद्यान के सन्निकट कालोदायी, शैलोदायी आदि अन्यतीर्थी रहते थे। राजगृह में मद्रक श्रमणोपासक था, जो जीवादि तत्वों का ज्ञाता था। भगवान् महावीर के आगमन को सुनकर वह उनको वन्दन करने के लिए जा रहा था। मार्ग में अन्यतीथिकों ने पूछा-तुम्हारे धर्माचार्य भगवान् महावीर पंचास्तिकाय की प्ररूपणा करते हैं, पर उसे कैसे माना जाय ?
१ निशीथचूणि पीठिका, पृष्ठ २०
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