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विहंगावलोकन
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महापुरुषों की जीवन कथाओं को प्राकृत' में रच- लिखकर कथाकार शुभशीलगण ने अपनी कथा - प्रणयन अभिरुचि का सुन्दर परिचय दिया है । इसमें संस्कृत का प्रयोग परिलक्षित है । इस कथा कोश की रचना विक्रम संवत् १५०६ में हुई थी ।
कल्पमंजरी -- पन्द्रहवीं शती की इस रचना के लेखक हैं आगम गच्छ के जयतिलक सूरिजी । इसमें २६० श्लोक प्रमाण हैं । 2
व्रतकथाकोश—संस्कृत की इस रचना के प्रणेता श्री श्र ुतसागर हैं । व्रतों से सम्बद्ध कथाएँ इसमें संगृहीत हैं । प्रस्तुत कोश सोलहवीं शती का है ।
इसी नाम से अन्य कृति के प्रणेता प्रसिद्ध भट्टारक सकलकीर्ति हैं । उनकी इस कृति में भी विभिन्न व्रतों से सन्दर्भित कथाएँ संकलित हैं । इस कृति की पूर्ण प्रति उपलब्ध न होने के कारण इसकी कथा - परिमाण अनिश्चित है | 4
कथावली - प्राकृत गद्य में लिखे इस बृहत् ग्रंथ के लेखक श्री भद्र ेश्वर हैं । इसमें तिरसठ शलाका-पुरुषों के वृत्तान्तों के साथ अन्य महान आत्माओं के चरित्र का भी कथात्मक रूप में अंकन हुआ है ।"
कथासमास - प्रस्तुत रचना उपदेशमाला - कथा समास नाम से भी जानी जाती है । इसमें संकलित कथाएँ प्राकृत में हैं । इन कथाओं का प्रयोजन मानव को निवृत्ति मार्ग की ओर प्रेरित और आकर्षित करना रहा है । इस ग्रंथ का प्रणयन संवत् १२०४ में हुआ था । "
कथार्णव——यह संस्कृत के अनुष्टुप छन्दों में विरचित कथाओं का संग्रह है। भगवान महावीर के परवर्ती आचार्यों का जीवन चरित्र कथारूप में इस कृति में समाहित हैं । इनमें अधिकांश की कथा आगमों, निर्युक्तियों
१. देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार, बंबई से प्रकाशित, सन् १९३२ और सन् १९३७ ।
२. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६५ ।
३. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६६ और ३६८ ।
४. जैन साहित्य और इतिहास, पंडित नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ ३७१-३७७ ।
५. राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व और कृतित्व, पृष्ठ १४ ।
६. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ५१; पाटन हस्त० सूची, भाग १, पृष्ठ ६० ।
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