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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
ज्ञानी थे, अतः उनसे उसका वाकछल किस प्रकार छिप सकता था ? 'सरिसव' प्राकृत भाषा का श्लिष्ट शब्द है, जिसकी संस्कृत छाया है-'सर्यप' और 'सदृशवया' । 'सर्षप' का अर्थ सरसों है और 'सहशवया' का अर्थ समान उम्र है । 'मास' भी प्राकृत का श्लिष्ट शब्द है, जिसकी संस्कृत छाया है-'माष' और 'मास' ! 'माष' का अर्थ उड़द है और 'मास' का महीना है । 'कुलत्था' भी प्राकृत का श्लिष्ट शब्द है, जिसकी संस्कृत छाया है-'कुलस्था' और 'कुलत्था' ? 'कुलस्था' का अर्थ कुलीन स्त्री और 'कुलत्था' का अर्थ है-कुलथी-धान्य विशेष ।
भगवान महावीर के तार्किक उत्तरों से सोमिल अत्यन्त प्रसन्न हुआ । उसने श्रद्धापूर्वक भगवान् के उपदेश को सुना और कहा-मैं श्रमणधर्म स्वीकार नहीं कर सकता, अतः श्रावकधर्म ग्रहण करना चाहता हूँ। सोमिल ने भगवान् महावीर से श्रावकधर्म ग्रहण किया और समाधिपूर्वक आयुष्य पूर्ण करके स्वर्ग का अधिकारी बना। कूणिक का भगवान् महावीर के समवसरण में धर्मश्रवण
औपपातिक सूत्र में महावीर के समवसरण का वर्णन है। प्रस्तुत कथानक का प्रारम्भ चम्पानगरी में हुआ हैं। चम्पा का विस्तृत वर्णन किया गया है। जो सभी आगमों के नगरों के वर्णन का मूल आधार रहा है । वास्तुकला की दृष्टि के यह वर्णन बहुत ही महत्वपूर्ण है। प्राचीन युग में नगरों का निर्माण किस प्रकार होता था, यह इस वर्णन से स्पष्ट है । नगर की शोभा गगनचुम्बी नव्य भव्य उच्च अट्टालिकाओं से ही नहीं होती बल्कि सघन वृक्षों की हरियाली से होती है । हरियाली लहलहाती है पानी की अधिकता से । इसलिए चम्पानगरी के साथ पूर्णभद्र चैत्य का भी उल्लेख किया गया है । वन-खण्ड में विविध प्रकार के वृक्ष थे, लताएँ थीं और नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षियों का मधुर कलरव दर्शकों के दिल को लुभाता था। उन सभी वृक्षों में अशोक वृक्ष का स्थान अनूठा था। भारतीय साहित्य में अशोक वृक्ष का उल्लेख हजारों स्थलों पर हआ है। जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराओं ने उसके सम्बन्ध में चिन्तन किया है । तीर्थंकर भी अशोक वृक्ष के नीचे विराजित होते हैं ।
१ देखिए-औपपातिक सूत्र प्रस्तावना, ले० देवेन्द्रमुनि, पृ. २०
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