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________________ श्रमणोपासक कथाएँ २४७ स्वीकार कर उस पर अपनी मुद्रा लगा देते थे जिससे अन्य श्रावक भी तत्व-दर्शन की ओर आगे बढ़ सकें। (भगवती स० ११, उ० १२) शंख-पुष्कली श्रावस्ती नगरी में शंख श्रावक था। उसकी पत्नी का नाम उत्पला था। पुष्कली नामक एक अन्य श्रमणोपासक भी वहाँ रहता था। दोनों ही जैनदर्शन के पूर्ण ज्ञाता थे। भगवान् महावीर का वहाँ पदार्पण हुआ। भगवान् का उपदेश श्रवण कर उन्होंने अनेक जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की। उसके बाद शंख श्रमणोपासक ने श्रावस्तो ने अन्य श्रमणोपासकों से कहा'पुष्कल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तैयार कराओ और उसका आस्वादन करते हुए, खाते और परस्पर खिलाते हुए पाक्षिक पौषध का अनुपालन करते हुए रहेंगे। सभी श्रमणोपासकों ने शंख की बात को ध्यानपूर्वक सुना। उसके पश्चात् शंख श्रमणोपासक को यह विचार आया कि खाते हुए पौषध न कर ब्रह्मचर्यपूर्वक मणि आदि का त्यागकर बिना किसी के सहयोग के मुझे अकेले ही पौषध करना श्रेयस्कर है। ऐसा सोचकर वह अपने घर आया । अपनी पत्नी उत्पला को पूछकर पौषधशाला में पौषध करके बैठ गया। इधर श्रावस्ती के श्रमणोपासकों ने विपुल अशन, पान आदि तैयार करवा लिया, किन्तु शंख श्रमणोपासक नहीं आया, इसलिए उसे बुलवाने का विचार किया। पुष्कली श्रावक उन सभी की ओर से उन्हें बुलाने गया। उत्पला से पूछा-शंख श्रावक कहाँ है ? उसने कहा--वे पौषधशाला में पौषध करके बैठे हैं । पुष्कली ने शंख को नमस्कार किया और कहा-आपने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तैयार करवाया है, अतः आहार आदि को खाते-पीते पौषध करें। शंख ने कहा-मैंने पौषध कर लिया है, तुम अपनी इच्छानुसार खाते-पीते पौषध करो। उन श्रावकों ने वैसा ही किया। रात्रि में धर्म जागरण करते हुए शंख ने सोचा-भगवान् महावीर के दर्शन करने के बाद ही मुझे पौषध पारना श्रेयस्कर है। सुबह होने पर शंख भगवान् की सेवा में पहुँचा। उधर पुष्कली आदि श्रावक भी भगवान् को वन्दन के लिए पहुँचे । उपदेश सुनने के बाद उन्होंने शंख को उपालम्भ दिया। प्रभु ने कहा-तुम शंख श्रावक की अवहेलना न करो, यह प्रियधर्मी एवं दृढ़धर्मी है । इसने प्रमाद और निद्रा का परित्याग कर सुदर्शन जागरिका जागृत की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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