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________________ २४६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा श्रवण कर उसने व्रतों को ग्रहण किया। चौदह वर्ष तक श्रावक व्रतों का पालन करने के पश्चात् अपना उत्तरदायित्व ज्येष्ठ पुत्र को देकर स्वयं साधना में तल्लीन हो गया, ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना की और समाधिपूर्वक आयु पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ। आनन्द गाथापति से लेकर सालिहीपिता तक इन दसों श्रमणोपासकों की परिगणना भगवान् महावीर के प्रमुखतम श्रावकों में की गई है। उपासकदशांग सूत्र में इनकी जीवन गाथाएँ हैं। दस उपासकों में से छह के जीवन में उपसर्ग उत्पन्न हुए थे। उनमें से चार उपासक विचलित हो गये किन्तु पुनः सँभल गये। अपनी भूल का प्रायश्चित्त कर लिया । दो उपासक पूर्णरूप से अविचल रहे और शेष चार उपासकों की साधना में किसी भी प्रकार के उपसर्ग नहीं आए। उपसर्ग साधक की कसौटी है । जो साधक उपसर्गों की कसौटी पर खरा उतरता है, उसका जीवन स्वर्ण की तरह निखर जाता है । (उपासक दशांग अ० १०) ऋषिभद्रपुत्र आलभिका नगरी में ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक था । उस नगर में अनेक श्रमणोपासक थे जो जीवादि तत्वों के परिज्ञाता थे। अन्य श्रमणोपासकों ने ऋषिभद्रपुत्र से पूछा-देवों की कितनी स्थिति है ? उसने कहा-जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट क्रमशः बढ़ती हुई तैतीस सागरोपम की। अन्य श्रमणोपासकों को शंका हुई कि उसका कथन यथार्थ है अथवा नहीं ? भगवान् महावीर आलभिका नगरो में पधारे। उनका उपदेश सुनने के बाद उस परिषद् ने भगवान से पूछा-ऋषिभद्रपुत्र का कथन यथार्थ है या नहीं? प्रभु ने कहा-उसका कथन यथार्थ है । मैं भी ऐसा कहता हूँ। यह सुनकर परिषद् प्रभावित हुई और ऋषिभद्रपुत्र से क्षमायाचना की। गणधर गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-क्या ऋषिभद्रपुत्र श्रमण बनेगा? भगवान् ने कहा- नहीं, यह श्रमणोपासक-जीवन व्यतीत करके आयु पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में देव बनेगा और वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा। प्रस्तुत कथानक से यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर के श्रमणोपासक तत्वदर्शन के अच्छे ज्ञाता थे और भगवान् उस सत्य-तथ्य को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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