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श्रमणोपासक कथाएँ
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रेवती मदिरा के नशे में उन्मत्त बनी हुई कामोद्दीपक हाव-भाव करने लगी तथा भोगों की याचना करने लगी। किन्तु महाशतक विचलित नहीं हुआ। रेवती अपना-सा मुह लेकर लौट गई। महाशतक साधना में उत्तरोत्तर प्रगति करता रहा। उसे अवधिज्ञान उत्पन्न हआ। रेवती वासना की ज्वाला में झुलस रही थी। वह पुनः-पुनः आकर कुचेष्टा करने लगी जिससे वह विक्षुब्ध हो उठा। उसने अवधिज्ञान से निहारकर कहा-रेवती! तू अत्यंत भयानक रोग से पीड़ित होकर रत्नप्रभा नामक पहली नरक में उत्पन्न होगी, जहाँ चौरासी हजार वर्ष तक भयंकर कष्टों को भोगेगी । वह भय से काँप उठी, उसके सामने मौत की काली छाया नाचने लगी। जैसा महाशतक ने कहा था, वैसा ही हुआ।
भगवान् महावीर का राजगृह में पदार्पण हुजा। उन्होंने गणधर गौतम को बताया-अन्तिम संलेखना स्वीकार कर महाशतक ने अप्रिय और अमनोज्ञ कथन कर भूल की है। तुम जाकर महाशतक को इसकी आलोचना कर प्रायश्चित्त करे, ऐसा सूचन करो। गौतम महाशतक के पास आये और भगवान का सन्देश कहा। महाशतक ने भगवान् के वचन को शिरोधार्य कर शृद्धि की। समाधिपूर्वक देह त्यागकर सौधर्मकल्प में देव बना । (उपासकदशांग अ०८)
नन्दिनीपिता श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता गाथापति था। उसके पास बारह करोड़ स्वर्ण-मुद्रायें थीं। दस-दस हजार गायों के चार गोकुल थे। उसकी पत्नी का नाम अश्विनी था । भगवान् महावीर के उपदेश को सुनकर उसने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये। व्रतों का पालन करते हुए जब चौदह वर्ष हो गये तो अपना उत्तरदायित्व ज्येष्ठ पुत्र को देकर वह साधना में जुट गया। उसकी साधना में किसी भी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हुई । बीस वर्ष तक श्रावक धर्म की आराधना कर वह सौधर्म देवलोक में देव बना । (उपासक दशांग अ०६)
सालिहीपिता श्रावस्ती में सालिहीपिता गाथापति था। उसके पास बारह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ थीं। उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनी था। उसके पास दसदस हजार गायों के चार गोकुल थे। भगवान् महावीर के उपदेश को
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