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श्रमणोपासक कथाएँ २४१
चुल्लशतक आलभिका नगरी में चुल्लशतक गाथापति था। उसके पास अठारह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं थी । दस-दस हजार गायों के छह गोकुल थे। एक बार भगवान् महावीर आलभिका पधारे। चुल्लशतक ने व्रत ग्रहण किये । एक दिन पौषधशाला में उसने पोषध व्रत स्वीकार कर रखा था। अर्धरात्रि में एक देव प्रगट हुआ। देव ने चुल्लशतक के तीनों पुत्रों के सात-सात टुकड़े कर दिये, पर वह व्रत से विचलित नहीं हुआ। अन्त में देव ने सोचा-धन ग्यारहवां प्राण है । अतः उसने कहा--यदि तुम व्रतों का भंग नहीं करोगे तो तुम्हारे सम्पूर्ण धन का अपहरण कर लूंगा। तुम दरिद्र बनकर दर-दर भटकोगे । तीन बार कहने पर चुल्लशतक के बिजली सी कौंध गई । वह घबड़ा गया। उसने उस पुरुष को पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, पर खम्भे के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा। व्याकुलता के कारण वह जोर से चिल्ला उठा। पत्नी ने आकर कहा-आपको अपने व्रत में दृढ़ रहना चाहिए, आलोचना कर आत्म-शोधन करें। उसे अपनी भूल ज्ञात हुई। उसने शुद्धिकरण किया । बीस वर्ष तक श्रावक व्रतों का पालन कर एवं एकादश प्रतिमाओं की आराधना की। एक मास की संलेखना-संथारा कर सौधर्म देवलोक में देव बना।
(उपासक दशांग अ०५)
कुण्डकौलिक काम्पिल्यपुर नगर में कुण्डकौलिक गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम पूणा था। अठारह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं का वह अधिपति था। दसदस हजार गायों के छह गोकुल थे। भगवान् के उपदेश को सुनकर कुण्डकौलिक ने व्रत ग्रहण किये । वह एक दिन मध्याह्न में अशोक वाटिका में पहुँचा । उसने अपनी अंगूठी और उत्तरीय उतार कर पृथ्वीशिला पट्टक पर रखे, और धर्म-ध्यान में संलग्न हो गया। उस समय एक देव प्रकट हुआ। अंगूठी और उत्तरीय लेकर आकाश में स्थित हो गया। देव ने कहा
-मंखिलपुत्र गौशालक का सिद्धान्त सुन्दर है। वहाँ पुरुषार्थ को स्थान नहीं है । वह नियतिवादी है। जो कुछ भी होगा, वह नियति के अनुसार ही होगा। इसलिए तुम उसके सिद्धान्त को स्वीकार करो।
कुण्डकोलिक-तुमने जो यह विराट ऋद्धि प्राप्त की है, वह पुरुषार्थ से प्राप्त की है या यों ही ?
देव-मैंने यों ही प्राप्त की है।
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