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विहंगावलोकन बृहत्कथाकोश-उपलब्ध कथाकोशों में प्रस्तुत कोश प्राचीनतम है।1 इसमें १५७ कथाएँ हैं। ग्रन्थ-परिमाण साढ़े बारह हजार श्लोक प्रमाण है। प्रन्थान्त की प्रशस्ति से विदित होता है कि इसके प्रणेता आचार्य हरिषेण हैं। इस ग्रन्थ की रचना काठियावाड़ के वर्धमानपुर नामक स्थान में वि० सं० ९५५ में हुई थी।
आराधना सत्कथा-प्रबन्ध-इसमें चार आराधनाओं का फल प्राप्त करने वाले धर्मात्मा पुरुषों की कथाएँ निबद्ध हैं। संस्कृत गद्य में प्रणीत यह कथाकोश दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में नब्बे कथाएँ हैं और दूसरे में बत्तीस । इसका रचनाकाल वि० सं० १०३७ से १११२ हैं। इसके रचयिता हैं पण्डित प्रभाचन्द्र अथवा भट्टारक प्रभाचन्द्र । धारानगरी में परमारनरेश भोज के उत्तराधिकारी जयसिंहदेव के राज्यकाल में इस कथाकोश का प्रभाचन्द्र ने प्रणयन किया है।
__ कथाकोश-संस्कृत श्लोकों में रचित प्रभाचन्द्र कृत गद्यात्मक कथाकोश का ही प्रस्तुत कोश पद्यात्मक एवं विस्तृत रूपान्तर है। इसमें नौ नई कथाएँ संश्लिष्ट हैं । कुल मिलाकर सौ से अधिक कथाएँ इसमें हैं। इसके रचयिता ब्रह्म नेमिदत्त हैं और रचनाकाल सोलहवीं शताब्दी का आरम्भ है।
__कथाकोश प्रकरणम्-श्रीवर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रणीत कथाकोश प्रकरणम् में प्राकृत की २३६ गाथाएँ हैं । इसकी संस्कृत टीका में गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग किया गया है । यत्र-तत्र निर्दिष्ट संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश के उद्धरणों से यह कृति विशेष प्रभावक बन पड़ी है। इसका रचनाकाल वि० सं० ११०८ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी रविवार है।
१. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २८३, डा० आ० ने० उपाध्ये द्वारा सम्पादित, सिंधी
जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १७, इसकी १२२ पृष्ठ में अंग्रेजी में लिखी भूमिका
महत्वपूर्ण है। २. सहस्र दिशैर्बद्धो नूनं पंचशतान्वितैः (१२५००), प्रशस्ति, पद्य १६ । ३. विनायकादिपालस्य राज्ये शक्रोपमानके । -पोलिटिकल हिस्ट्री आफ नार्दन
इन्डिया, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, पृष्ठ ४४ । ४. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३२, वृहत्कथाकोश, प्रस्तावना, पृ० ६२-६३। ५. जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग ६, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी
पृष्ठ २३६ ।
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