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________________ ८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा प्रमुख कारण यह है कि अर्थकथा और कामकथा संसार विवर्द्धक होने के कारण जैन आचार्यों को उसका वर्णन अभिप्रेत ही नहीं था। उनकी प्रमुख रुचि धर्मकथा की ओर ही थी। इसलिए उन्होंने (१) आक्षेपिणी (२) विक्षेपणी (३) संवेगिनी (४) निर्वेदिनी-धर्मकथा के ये चार भेद बताए हैं। औपदेशिक कथा संग्रह चरणकरणानुयोगविषयक साहित्य धर्मोपदेश या औपदेशिक प्रकरणों के रूप में उद्भूत एवं विकसित हुआ है। धर्मोपदेश में संयम, शील, तप, त्याग और वैराग्य आदि भावनाओं को प्रमुखता दी गई है। जैन साधु प्रवचनारम्भ में कुछ शब्दों या श्लोकों में अपनी धर्मदेशना का प्रसंग बता देता है और फिर एक लम्बी-सी मनोरंजक कहानी कहने लगता है जिसमें अनेक रोमांचक घटनाएँ होती हैं और अनेक बार कथा के भीतर कथा निकलती जाती है। इस प्रकार ये औपदेशिक प्रकरण अत्यन्त महनीय कथा साहित्य से आपूर्ण हैं जिसमें उपन्यास, दृष्टान्तकथा, प्राणि-नीतिकथा, पुराणकथा, परिकथा, नानाविध कौतुक और अद्भुत कथाएँ उपलब्ध होती हैं । जैन मनीषियों ने इस प्रकार विशाल औपदेशिक कथा साहित्य का सृजन किया है । धर्मोपदेश प्रकरण के अन्तर्गत जो उपदेशमाला, उपदेशप्रकरण. उपदेशरसायन, उपदेशचिन्तामणि, उपदेशकन्दली, उपदेशतरंगिणी, भावनासार आदि अर्धशतक रचनाओं का विवरण, जैन साहित्य के बृहद् इतिहास चतुर्थ भाग में संकलित है। दिगम्बर साहित्य में यद्यपि ऐसे औपदेशिक प्रकरणों की कमी है जिन पर कथा-साहित्य रचा गया हो फिर भी कुन्दकुन्द के षट्प्राभत की टीका में, वट्टकेर के 'मूलाचार' में, शिवार्य की भगवती आराधना तथा रत्नकरण्डश्रावकाचारादि की टीकाओं में औपदेशिक कथाओं के संग्रह सुलभ होते हैं। कतिपय कथाकोशों का विवरण औपदेशिक कथा साहित्य के अनुकरण पर अनेक कोशों का सृजन हुआ है। इनमें कतिपय कथाकोशों का संक्षिप्त विवरण देना यहां समीचीन होगा। १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, पृष्ठ २३३-२३४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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