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________________ विहंगावलोकन ७ विभिन्न रूपों का वर्गीकरण विषय, शैली, पात्र एवं भाषा के आधार पर किया गया है ।। साधारणतया जैन कथाओं को अग्रांकित चार भागों में विभक्त किया जा सकता है? -(i) धर्म सम्बन्धी कथाएँ (ii) अर्थ सम्बन्धी कथाएँ (iii) काम सम्बन्धी कथाएँ (iv) मोक्ष सम्बन्धी कथाएँ । इस वर्गीकरण में भी मोक्ष विषयक भावना सर्वत्र विद्यमान है। इसके अन्तर्गत विरक्ति, त्याग, तपस्या, संयम आदि धार्मिक चिंतन एवं कृत्य स्वयं ही सन्निहित हैं क्योंकि जेन कथाओं का लक्ष्य धर्म की महिमा को बताना तथा धर्मानुमोदित आचार का प्रचार करना है। प्रकारान्तर से जैन कथाओं को इस प्रकार से भी वर्गीकृत किया जा सकता है । यथा-(१) धार्मिक (२) ऐतिहासिक (३) सामाजिक (४) उपदेशात्मक (५) मनोरंजनात्मक (६) अलौकिक (७) नैतिक (८) पशु-पक्षी सम्बन्धी (6) गाथाएँ (१०) शाप-वरदान विषयक (११) व्यवसाय सम्बन्धी (१२) विविध (१३) यात्रा सम्बन्धी (१४) गुरु शिष्य सम्बन्धी (१५) देवी-देवता सम्बन्धी (१६) शकुनापशकुन सम्बन्धी (१७) मंत्र-तंत्रादि सम्बन्धी (१८) बुद्धि परीक्षण सम्बन्धी (१६) विविध जाति वर्ग सम्बन्धी (२०) विशिष्ट न्याय विषयक (२१) काल्पनिक कथाएँ (२२) प्रकीर्णक । लेकिन मेरी दृष्टि से सम्पूर्ण भारतीय कथा साहित्य को चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (i) नीतिकथा (Did. ctic tales) (i) धर्मकथा (Religious tales) (iii) लोककथा (Folk or popular tales) (iv) रूपक कथा (Allegorical tales) स्थानांग सूत्र में कथा के तीन भेद बताए गये हैं तिविहा कहा-अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा।-सूत्र १८६ । इन भेदों के पश्चात स्थानांग सूत्र २८२ में धर्मकथा के उपभेद भी बताए गये हैं। इसका १. जैन साहित्य का बहद् इतिहास, भाग ६, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, पृष्ठ २३१ । २. जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन, श्रीचन्द्र जैन, पृष्ठ २३ । ३. जैनकथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन; श्रीचन्द्र जैन, पृष्ठ ३४ । ४. नौका और नाविक (भूमिका) देवेन्द्र मुनि शास्त्री, पृष्ठ ८-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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