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६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
इसके लिए जो विधा अपनाई जाती है वह है कथा ।
कथा का आविर्भाव कब हुआ, कैसे हुआ, किसने किया ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में एक ही बात कही जा सकती है कि कथा का आविर्भाव भी मानव की बुद्धि एवं हृदय के साथ, उसकी कमनीय भावधारा और बुद्धि विचक्षणता के साथ हुआ।
सामान्य शब्दों में 'कथा' का निर्वचन इस प्रकार किया जा सकता है 'क' 'था'; अर्थात् अमुक व्यक्ति था। और फिर उसका यानि कथा का विकास मानव-जीवन के साथ होता चला जाता है, दूसरे शब्दों में कथा मानव-जीवन के साथ जुड़ी हुई है।
चूँ कि मानव-जीवन का आयाम बहुत ही विस्तृत है, सारे संसार में फैला हुआ है, इसी कारण कथा का canvas भी अति विस्तृत है। इसके लोक-साहित्य आदि विभिन्न भेद-प्रभेद हैं। जैन कथाओं का वर्गीकरण
जैन कथा वाङमय एक विशाल आगार है जिसे किसी निश्चित परिधि में निबद्ध करना सहज नहीं है तथापि कथा-साहित्य के विशारदों ने अपने भगीरथ यत्न-प्रयत्न किए हैं। दीर्घनिकाय के ब्रह्मजालसुत्त में एक स्थान पर कथाओं के अनेक भेद किए हैं। यथा-(१) राजकथा (२) चोर कथा (३) महामात्यकथा (४) सेनकथा (५) भयकथा (६) युद्धकथा (७) अन्नकथा (८) पानकथा (6) वस्त्रकथा (१०) शयनकथा (११) मालाकथा (१२) गंधकथा (१३) ज्ञातिकथा (१४) यानकथा (१५) ग्रामकथा (१६) निगमकथा (१७) नगरकथा (१८) जनपदकथा (१६) स्त्रीकथा (२०) पुरुष कथा (२१) शूरकथा (२२) विशिखाकथा (बाजारू गप्पें) (२३) कुम्भस्थान कथा (पनघट की कहानियाँ) (२४) पूर्वप्रेतकथा (गूजरों की कहानियाँ) (२५) निरर्थककथा (२६) लोकाख्यायिका (२७) समुद्राख्यायिका 12 कथा के भेदों का निरूपण करते हुए आगमों में अकथा, विकथा, कथा-ये तीन भेद किए गये हैं। उनमें कथा तो उपादेय है, शेष त्याज्य । उपादेयकथा के
१. दीर्घनिकाय १/८ । २. (क) लोककथायें और उनका संग्रहकार्य, : डा. वासुदेवशरण अग्रवाल,
आजकल, लोककथा अंक, पृष्ठ ६ । (ख) जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन, श्रीचन्द्र जैन, पृष्ठ ३३ ।
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