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विहंगावलोकन ५ सांसारिक वैभव-विलास से विरक्ति में जैन कथाएँ प्रयोजनसिद्ध हेतु का काम करती हैं।
कहानी का प्रारम्भ संसार के गहन रहस्यों को समझने और अनबूझ पहेलियों को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक जगत में एक प्रणाली प्रचलित है। इसे अंग्रेजी में कहा जाता है-Assumption अथवा Presumption.
एक संकेत मान लिया जाता है अथवा कल्पित कर लिया जाता है और फिर उसके आधार पर आगे बढ़ा जाता है, अध्ययन किया जाता है, परिणाम यह होता है कि रहस्य उजागर हो जाता है।
भूमंडल के समान वायुभार वाले स्थानों पर खींची गई रेखाएँ (isobars), ध्रुवों से भूमंडल पर होती हुई जाने वाली रेखाएँ (Meridians) ये कर्क, मकर और भूमध्य रेखाएँ आदि क्या हैं ? कल्पित ही तो हैं।
__इसी प्रकार बीजगणित के बीज, रेखागणित, त्रिकोणमिति आदि के आधार x, y, a, b, c, d, B, m, sin, tan, cos आदि कल्पित संकेत ही तो हैं किन्तु इन संकेतों पर आधारित अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने प्रकृति के अनेक रहस्य उद्घाटित कर दिए हैं।
मानव-जीवन भी एक पहेली है, अनबूझ रहस्य है। वह कहाँ से आया है ? इस जन्म से पहले क्या था ? जीवन में सुख-दुःख क्यों पा रहा है ? इस जीवन के बाद उसका क्या होगा? मर कर कहाँ जायेगा? यह सब मानव-जीवन के अनबूझ रहस्य ही तो हैं ।
जब एक ही जीवन इतना रहस्यपूर्ण है तो इस जीव की संसार-यात्रा अथवा संसारी जीव की यात्रा तो कितनी रहस्यपूर्ण और उलझन भरी होगी, इसके बारे में केवल कल्पना ही की जा सकती है।
लेकिन यह कल्पना, आकाश कुसुमवत् कोरी कल्पना ही नहीं है, अपितु वैज्ञानिक क्षेत्र में मान्य संकेतात्मक है, आधार सहित है, ठोस धरातल पर आधारित है। जिसकी परिकल्पना (Preception) भी सत्य है और परिणाम भी सत्य।
जिस प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक assumptions के आधार पर प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करते हैं, उसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी इसी आधार पर जीवन के रहस्यों को सुलझाया जाता है, उजागर किया जाता है और सर्वजनभोग्य बनाया जाता है ।
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