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श्रमणोपासक कथाएँ
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में उपकरण बलवान न होने से वह अपनी शक्ति प्रदर्शित नहीं कर पाता । पर युवावस्था में उपकरण शक्तिमान होने से वह अपनी शक्ति बताता है ।
प्रदेशी - किसी तस्कर को पहले हम जीवित अवस्था में तौले और फिर मारकर तौलें तो वजन में कोई अन्तर नहीं होता, अतः जीव और शरीर में अभिन्नता है ।
केशी - जैसे खाली और हवा से भरी हुई मशक के वजन में ( विशेष ) अन्तर नहीं पड़ता, वैसे ही जीवित और मृत पुरुष के वजन में अन्तर नहीं पड़ता । जीव अमूर्त है । उसका अपना कोई वजन नहीं है ।
प्रदेशी - मैंने तस्कर के शरीर के प्रत्येक अंग- उपांग को काटकर देखा, कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया, इसलिए जीव का अभाव है ।
केशी- मुझे लगता है कि तुम सूढ़ हो । तुम्हारी प्रवृत्ति भी लकड़हारे की तरह है । कुछ लोग जंगल में लकड़ियाँ लेने पहुँचे । उनके साथ अग्नि थी । उन्होंने एक साथी से कहा- हम बहुत दूर जंगल में जा रहे हैं, तुम हमारे लिए भोजन तैयार करके रखना । यदि अग्नि बुझ जाय तो अरणि की लकड़ियों से आग प्रकट कर लेना । उसके साथी जंगल में चले गये, आग बुझ गई । उसने लकड़ियों को इधर-उधर उलट-पुलट कर देखा, पर आग दिखाई नहीं दी । लकड़ियों के चीर चीर कर टुकड़े किये । वह हताश और निराश होकर सोचने लगा - मेरे साथियों ने मेरा उपहास किया है । वे यदि लकड़ियों में आग की बात नहीं कहते तो मैं अग्नि को सम्भालकर रखता । भूखे-प्यासे साथीगण लकड़ियाँ लेकर लौटे किन्तु भोजन तैयार नहीं था । एक साथी ने उन अरणि की लकड़ियों को घिस कर अग्नि तैयार की और सभी ने भोजन किया । वह लकड़हारा लकड़ी को चीरकर अग्नि पाना चाहता था, वैसे हो तुम भी शरीर को चीरकर जीव पाना चाहते हो। तुम भी उस मूर्ख लकड़हारे की तरह ही हो न ?
प्रदेशी -हथेली पर रखा हुआ आँवला स्पष्ट दिखाई देता है, उसी तरह क्या आप जीव को दिखा सकते हैं ?
केशी - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अशरीरी जीव, परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध और वायु इन आठ पदार्थों को विशिष्ट ज्ञानी ही देख सकते हैं ।
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