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श्रमणोपासक कथाएँ २२६ सूर्याभदेव भगवान के दर्शन के लिए आया। उसने बत्तीस प्रकार के नाट्य किये । बत्तीस नाटक में उसने भगवान् महावीर का च्यवन से लेकर परि. निर्वाण तक अभिनय किया। अभिनय के बाद सूर्याभ देव चला गया। गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-यह विशिष्ट देव ऋद्धि इन्हें कैसे प्राप्त हुई ? भगवान् ने कहा-श्वेताम्बिका नगरो में राजा प्रदेशी था। उसकी रानी का नाम सूर्यकान्ता और पुत्र का नाम सूर्यकान्त था। चित्त नामक सारथी था, जो बहुत ही बुद्धिमान था। एक दिन प्रदेशी ने चित्त सारथी को उपहार देकर श्रावस्तो के राजा जितशत्रु के पास भेजा। वहाँ उसने पार्खापत्य केशीश्रमण के दर्शन किये। प्रवचन को सुनकर उसने श्रावकव्रत ग्रहण किये।
राजा जितशत्रु की ओर से उपहार लेकर चित्त सारथो पुनः श्वेताम्बिका की ओर प्रस्थान करने लगा। उसने के शोश्रमण से निवेदन किया
आप श्वेताम्बिका नगरी पधारें। केशोश्रमण ने कहा-राजा प्रदेशो अधामिक है, हम वहां कैसे आ सकते हैं ? चित सारथो-आप वहाँ पधारे, उन्हें उपदेश देकर कल्याण के मार्ग पर लगावें। उसको प्रार्थना को सम्मान देकर के शीश्रमण श्वेताम्बिका नगरो के उद्यान में पधारें। वित्त सारथी घोड़ों की परीक्षा के बहाने राजा प्रदेशो को मृगवन उद्यान में लाया। राजा प्रदेशो केशीश्रमण के दिव्य-भव्य रूप को निहारकर अत्यन्त प्रभावित हुआ। वह उनके सन्निकट आया। उसने पूछा- क्या आप जीव और शरीर को पृथक् मानते हैं।
केशी--हाँ ! हम जोव और शरीर को पृथक् मानते हैं ।
प्रदेशी ने तर्क दिया-मेरे दादा अधार्मिक थे। प्रजा का ठीक तरह से पालन नहीं करते थे। आपको दृष्टि से बे मरकर नरक में गये हैं। उन का मेरा बहुत ही प्रेम था। वे मुझे आकर क्यों नहीं कहते कि मैं नरक में पैदा हुआ हूँ । वहाँ अपार कष्टों का अनुभव कर रहा हूँ।
केशी-तुम्हारी रानी के साथ कोई कामुक व्यक्ति विषय-सेवन की इच्छा करे तो क्या तुम उसे दण्ड दोगे ?
प्रदेशी-मैं उसके प्राण ले लूंगा।
केशो-वह व्यक्ति तुमसे निवेदन करे कि मैं अपने सम्बन्धियों को सूचित कर दूं कि मुझे दण्ड मिल रहा है, अतः तुम भी इस कृत्य से बचना । उस पुरुष को सूचना देने के लिए क्या तुम मुक्त करोगे ?
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