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________________ २२८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा कुटिया पर आया। दर्भ, कुश और बालुका आदि से वेदिका का निर्माण किया, अरणी से अग्नि पैदा की और उसके दाहिनी ओर उसने सकथ (उपकरण विशेष) वल्कल, अग्निपात्र, शय्या, कमण्डल, दण्ड और स्वयं को स्थापित किया। उसके पश्चात् मधु, घृत, चावल से अग्नि में होम किया। 'बलि' पकाकर अग्नि देवता की पूजा की। बाद में अतिथियों को भोजन कराकर उसने स्वयं भोजन किया। इसी प्रकार उसने दक्षिण में यम, पश्चिम में वरुण और उत्तर में वैश्रमण की पूजा की। एक दिन पुनः उसके मन में विचार उद्बुद्ध हुआ-मैं वल्कल वस्त्र धारण कर पात्र तथा टोकरी लेकर, काष्ठमुद्रा से मुंह को बाँधकर उत्तर दिशा की ओर महाप्रस्थान कर अभिग्रह धारण करूगा। जल, थल, दुर्गम, विषम पर्वत, गर्त या गुफा से गिरकर या स्थित होकर पुनः न उठेगा। यह चिन्तन कर वह अशोक वृक्ष के नीचे गया। वहाँ पर पात्र, टोकरी, एक ओर रखकर उसने वेदिका बनाई, स्नान किया। दर्भ आदि क्रियाओं का अनुष्ठान किया। एक देव ने अन्तरिक्ष में खड़े होकर सोमिल से कहातुम्हारे कार्य उचित नहीं है । उसने देव के कथन की उपेक्षा की, किन्तु देव के पूनः उद्बोधन से उसने श्रावक के पांच अणुव्रत और सात शिक्षा व्रत ग्रहण किये। उसके बाद वह विविध प्रकार के तप करता रहा। अन्त में अर्धमासिक संलेखना से आत्मा को भावित करता हुआ पूर्वकृत पापकर्मों की आलोचना नहीं करके वहाँ से आयुष्य पूर्ण करके शुक्र नामक महाग्रह में उत्पन्न हआ। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। यहाँ यह स्मरण रखना होगा कि सोमिल नाम के दो श्रमणोपासकों का वर्णन आगम साहित्य में है । एक का वर्णन पृफ्फिया आगम में है तो दूसरे का वर्णन भगवती शतक अठारहवें, उद्देशक दशवें में है। दोनों वर्ण से ब्राह्मण है। एक ने भगवान महावीर से प्रश्न किये तो दूसरे ने भगवान पार्श्व से । भगवान् पार्श्व से प्रश्न करने वाला सोमिल वाराणसी का था और महावीर प्रभु से प्रश्न करने वाला सोमिल ब्राह्मण वाणिज्य ग्राम का था। दोनों का काल पृथक है। नाम साम्य होने से भ्रम न हो जाय, इस. लिए प्रबुद्ध पाठक ध्यान रखें। राजा प्रदेशी रायपसेणी य सूत्र में राजा प्रदेशी का कथानक आया है। आमलकप्पा के आम्रसाल चैत्य में भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । उस समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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