________________
श्रमणोपासक कथाएँ
पार्श्वनाथ तीर्थ : सोमिल ब्राह्मण
पल्फिया के तीसरे अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण का कथानक है। श्रमण और श्रमणियों के कथानक के पश्चात् श्रमणोपासकों की कथायें दी गई हैं। भगवान पार्श्वनाथ के युग में वाराणसी में सोमिल ब्राह्मण था। वह वेदों का पारंगत पण्डित था। भगवान् पार्श्व 'अम्बसाल' उद्यान में पधारे । भगवान् के उपदेश को सुनकर वह श्रावक बना ।
___कालान्तर में सोमिल के विचारों में परिवर्तन हआ और वह मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। उसके अन्तर्मानस में ये विचार उद्बुद्ध हुएमैंने वेदों का अध्ययन किया, पत्नी के साथ विविध प्रकार के भोग भोगे, पुत्र भी उत्पन्न हए। विराट ऋद्धि का मैं अधिपति बना । मैंने यज्ञ किये, पशुओं का वध किया और अतिथियों को अर्चना की, इसलिए अब मेरा कर्तव्य है कि विविध वृक्षों वाला बगीचा लगाऊँ । उसने बगीचा लगाया। उसके पश्चात् उसे विचार आया-मैं अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर मित्र और परिजनों की अनुमति प्राप्त कर तापसों के योग्य कड़ाही, कड़छी, ताम्बे के पात्र लेकर गंगातट निवासी वानप्रस्थ तपस्वियों की भाँति विचरण करू । उसके पश्चात् दिशाप्रोक्षित तापसों से प्रव्रज्या लेकर छठ्ठ-छट्ठ तर स्वीकार करता हुआ भुजाएं ऊपर रखकर वह विचरने लगा। प्रथम छठ पारणे के दिन वह आतापना भूमि से चलकर, वल्कल के वस्त्र धारण कर और टोकरी को लेकर पूर्व दिशा की ओर चला । उसने सोमदेव की पूजा को । कन्द-मूल, फल आदि से टोकरी को भरकर वह अपनी कुटिया में आया। वहाँ उसने वेदिका को लोप-पोतकर शुद्ध किया। फिर दर्भ और कलश को लेकर गंगा-स्नान के लिए गया। पानी का आचमन कर देवता और पितरों को श्रद्धांजलि दी। पुनः वह
( २२७ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org