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________________ २२६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा के लिए दुःख का निमित्त नहीं बनती। जो लोग धार्मिक हैं, उनका सबल होना अच्छा है । जयन्ती - जीवों का दक्ष होना अच्छा है या आलसी ? महावीर - जो जीव अधार्मिक हैं, अधर्मानुसार विचरण करते हैं, उनका आलसी होना अच्छा । जो जीव धर्माचरण करते हैं, उनका दक्ष ( उद्यमी) होना अच्छा है । क्योंकि वे जीव आचार्य, उपाध्याय आदि की सेवा करते हैं । जयन्ती - इन्द्रियों के वशीभूत होकर जीव क्या कर्म बाँधता है ? भगवान् - इन्द्रियों के वशीभूत होकर जीव संसार में परिभ्रमण करता है । श्रमणोपासका जयन्ती प्रभु महावीर से अपने प्रश्नों का समाधान पाकर अत्यन्त हर्षित हुई । जीवाजीवविभक्ति को जानकर उसने महावीर प्रभु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। प्रस्तुत कथानक में जीवन की गुरु गम्भीर ग्रन्थियाँ जयन्ती ने भगवान् महावीर के समक्ष प्रस्तुत कीं। प्रभु महावीर ने जिस सुगम रीति से समाधान किया, वह उनके अतिशय ज्ञान का द्योतक है। आगम साहित्यगत श्रमणी कथाओं पर यहाँ संक्षेप में ही विचार किया है। जिनकी चर्चा मूल आगमों में है । आगमोत्तरकालीन ग्रन्थों में तो प्राचीन युग को सैकड़ों श्रमणी-सतियाँ आदि के कथानक मिलते हैं जिनकी चर्चा अन्यत्र प्रसंगानुसार की जायेगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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