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________________ श्रमणी कथाएँ २२५ जयन्ती- भन्ते ! जीवों का सोना अच्छा है या जागना ? महावीर-कितने ही जीवों का सोना अच्छा है और कितने हो जीवों का जागना अच्छा है। जयन्ती-भगवन् ! यह कैसे ? महावीर-जयन्ते ! जो जीव अधार्मिक हैं, अधर्म का अनुसरण करते हैं, अधर्म में आसक्त हैं और अधर्म के द्वारा ही अपना जीविकोपार्जन करते हैं, उन जीवों का सोना ही अच्छा है। प्राण, भूत, जीव, सत्त्व समूदाय के शोक एव परिताप का कारण नहीं बनेंगे, अतः अधार्मिक जीवों का सोना अच्छा है। हे जयन्ती ! जो जीव धार्मिक, धर्मानुरागी, धर्मप्रिय और धर्मजीवी हैं, उनका जागना अच्छा है। धार्मिक पुरुष जब तक जागते रहते हैं, तब तक प्राणियों के अदुःख और अपरिताप के लिए कार्य करते हैं। ऐसे पुरुष जागृत हों तो अपने और दूसरों के लिए धार्मिक कार्यों में निमित्त बनते हैं, अतः उनका जागते रहना श्रेयस्कर है। जयन्ती-भन्ते ! क्या सभी भवसिद्धिक आत्माएँ मोक्षगामिनी हैं ? महावीर--हाँ, जो भव-सिद्धिक हैं, वे सभी आत्माएँ मोक्षगामिनी हैं। जयन्ती-भगवन् ! यदि सभी भव-सिद्धिक जीव मुक्त हो जायेंगे तो क्या संसार उनसे खाली नहीं हो जायेगा ? __ महावीर-ऐसा नहीं। सादि तथा अनन्त व दोनों ओर से परिमित एवं दूसरी श्रेणियों से परिवृत्त सर्वाकाश की श्रेणी में से एक-एक परमाणु प्रद्गल प्रतिसमय निकालने पर अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी व्यतीत हो जायें तथापि वह श्रेणी रिक्त नहीं होती। इसी प्रकार भव-सिद्धिक जीवों के मुक्त होने पर यह संसार उनसे रिक्त नहीं होगा। जयन्ती-जीवों को दुर्बलता अच्छी है या सबलता अच्छी है ? महावीर-कितने ही जीवों की सबलता अच्छी है और कितने ही जीवों की दुर्बलता। जयन्ती-वह कैसे ? महावीर-जो जीव अधार्मिक हैं, और अधर्म से जीविकोपार्जन करते हैं उनकी दुर्बलता अच्छी है क्योंकि उनकी वह दुर्बलता अन्य प्राणियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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