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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
मिका भिक्ष प्रतिमा, दश दशमिका भिक्ष प्रतिमा, लघुसर्वतोभद्र. प्रतिमा महत् सर्वतोभद्र प्रतिमा, भद्रोत्तर प्रतिमा, मुक्तावली, आयम्बिल, वर्धमान तप आदि उत्कृष्टतम तपों की आराधना कर वे सभी सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होती हैं । इस प्रकार सम्राट श्रेणिक की तेबीस महारानियों ने भगवान् महावीर के शासन में संयम ही नहीं लिया, अपितु इतने उत्कृष्ट तप की आराधना की, जिसे पढ़कर पाठक विस्मित हुए नहीं रह सकता। (अन्तकद्दशा वर्ग ८, अ. १-१०) जयन्ती श्रमणोपासिका
___ भगवती सूत्र के बारहवें शतक के दूसरे उद्देशक में महावीर तीर्थ में होने वाली जयन्ती का कथानक है
वत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी थी । वहाँ 'चन्द्रावतरण' चैत्य था। वहां जयन्ती श्राविका थी। जयन्ती श्राविका श्रमणों के लिए शय्यातर के रूप में विश्र त थी। जो भी नवीन सन्त आते, वे जयन्ती के यहाँ वसति की याचना करते । भगवान् महावीर के पावन प्रवचन को सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न हुई। उसने भगवान से प्रश्न पूछे-भंते ! जीव शीघ्र ही गुरुत्व को कैसे प्राप्त होता है ?
महावीर-जयन्ती ! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषावाद और मिथ्यादर्शनशल्य इन अठारह पापों के आसेवन से जीव गुरुत्व को प्राप्त होता है।
जयन्ती-भगवन् ! आत्मा लघुत्व को कैसे प्राप्त होता है ?
महावीर-प्राणातिपात आदि अठारह पापों के अनासेवन से आत्मा लघुत्व को प्राप्त होता है। प्राणातिपात आदि की प्रवृत्ति से आत्मा जिस प्रकार संसार को बढ़ाता है, प्रलम्ब करता है, संसार में भ्रमण करता है, उसी प्रकार उसकी निवृत्ति से संसार को घटाता है, ह्रस्व करता है, और उसका उल्लंघन भी कर देता है।
जयन्ती-भगवन् ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से प्राप्त होती है या पारणाम से ? ___महावीर-मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव में स्वभाव से होती है, परिणाम से नहीं ?
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