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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
शील का प्रभाव है। द्रौपदी के शील से प्रभावित होकर ही शासनदेव सहायता करता है । जैन परम्परा में द्रौपदी कुरुवंश की मर्यादा रखने वाली, व्यवहार कुशल, कुशाग्न बुद्धिशालिनी, पति-परायणा, स्वाभिमानिनी नारी है।
प्रस्तुत कथानक में श्रीकृष्ण के नरसिंह रूप का भी वर्णन है। नरसिंहावतार की चर्चा श्रीमद्भागवत में हैं, जो विष्ण के अवतार थे। पर श्रीकृष्ण ने कभा नरसिंह का रूप धारण किया हो, ऐसा प्रसंग वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में देखने में नहीं आया, पर प्रस्तुत कथानक में इसका सजीव चित्रग है। पद्मावती आदि श्रमणियाँ
अन्तकृद्दशा सूत्र के पाँचवें वर्ग के एक से दस अध्ययन तक पद्मावती आदि श्रमणियों के कथानक आये हैं।
एक बार भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका में पधारे । कृष्ण महाराज भगवान् को वन्दन-नमस्कार करने गये । उपदेश सुनकर परिषद् लौट गई। कृष्ण महाराज ने जिज्ञासा प्रस्तुत की-देवलोक सदृश इस द्वारिका नगरी का विनाश कैसे होगा ? भगवान ने कहा- मदिरा, अग्नि और द्वीपायन ऋषि के कोप के कारण द्वारिका नगरी का विनाश होगा।।
कृष्ण चिन्तन करने लगे-जालि, मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वीरसेन, प्रद्युम्न, शाम्ब, अनिरुद्ध, दृढ़नेमि, सत्यनेमि आदि राजकुमार धन्य हैं, जिन्होंने श्रमणधर्म ग्रहण किया है, पर मैं संसार का परित्याग नहीं कर पा रहा हूँ।
__ भगवान् ने कहा-कृष्ण ! वासुदेव निदानकृत होने से प्रव्रज्या ग्रहण नहीं कर सकते। तुम चिन्तित मत बनो। आगामी उत्सर्पिणी काल में "अमम" नामक बारहवें तीर्थंकर बनोगे। श्रीकृष्ण ने नगर में उद्घोषणा करवाई कि जो भी अर्हन्त अरिष्टनेमि के पास दीक्षा लेना चाहें, वे सहर्ष दीक्षित हो सकते हैं। दीक्षार्थी के जो आश्रित कुटुम्बीजन होंगे, उनकी व्यवस्था स्वयं कृष्ण करेंगे और दीक्षामहोत्सव भी कृष्ण करेंगे।
श्रीकृष्ण की प्रेरणा से उनकी पट्टमहिषी पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी इन आठों ने प्रव्रज्या ग्रहण की तथा शाम्बकुमार की भार्या मूलश्री एवं मूलदत्ता ने भी यक्षिणो आर्या के पास प्रव्रज्या लेकर अपने जीवन को पावन बतावा ।
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