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श्रमण कथाएँ
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और कण्डरीक भोगों में आसक्त होकर तीन दिन की आय भोगकर तैंतीस सागर की स्थिति वाला सातवीं नरक का मेहमान बना। जो साधक वर्षों तक उत्कृष्ट साधना कर बाद में साधना से च्युत हो जाते हैं उनकी दुर्गति होती है और जो जीवन की सांध्य बेला में भी उत्कृष्ट साधना करता है, वह सद्गति को प्राप्त करता है।
प्रस्तुत कथानक में उत्थान और पतन का तथा पतन और उत्थान का सजीव चित्रण है। स्थविरावली
श्रमण भगवान् महावीर के पश्चात् अनेक स्थविर भगवन्तों ने शासन की सेवा की। उन स्थविर भगवन्तों का उल्लेख कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र आदि में है। भगवान् महावीर के पश्चात् गणधर गौतम, आर्य सुधर्मा और जम्बू ये तीनों केवलज्ञानी हुए । प्रभव, शय्यं भव, यशोभद्र, संभूति विजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र ये छह श्रुतकेवली हुए। महागिरि, सुहस्ति, गुणसुन्दर, कालकाचार्य स्कन्दिलाचार्य, रेवतीमित्र, मंगू, धर्म, चन्द्रगुप्त, आर्यव्रज ये दसों आचार्य दस पूर्वधर थे। उसके पश्चात् धोरेधीरे पूओं का ज्ञान न्यून होता चला गया। देवद्धिगणि क्षमाश्रमण एक पूर्वधर आचार्य थे। जैनधर्म में अनेक प्रतिभासम्पन्न ज्योतिर्धर आचार्य हुए। उसकी संक्षिप्त सूचना इसमें दी गई है। इन ज्योतिर्धर आचार्यों के सम्बन्ध में विविध ग्रन्थों में विशिष्ट जानकारी है। पर विस्तार भय से हम उस सम्बन्ध में न लिखकर तत् सम्बन्धी मूल ग्रन्थों को देखने के लिए प्रबुद्ध पाठकों को निवेदन करते हैं।
इस प्रकार आगम साहित्य में तीर्थंकरों के शासन में श्रमणों की कथाएँ पूर्ण होती हैं।
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