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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
पानी, वायु, वनस्पति और त्रस की हिंसा कम करता है । अग्नि से होने वाली हिंसा को वह घटाता है, इसीलिए आए जलाने वाला आरम्भ अधिक करता है और आग बुझाने वाला कम ।
कालोदायी- भगवन् ! क्या अचित्त पुद्गल प्रकाश या उद्योत करते हैं, वे किस प्रकार प्रकाशित होते हैं ?
महावीर-अचित्त पुद्गल भी प्रकाश करते हैं। जब कोई तेजोलेश्याधारी मुनि तेजोलेश्या छोड़ता है, तब वे पुद्गल दूर-दूर तक गिरते हैं । वे दूर और समीप प्रकाश फैलाते हैं। पुद्गलों के अचित्त होते हुए भी प्रयोक्ता हिंसा करने वाला और प्रयोग हिंसाजनक होता है।
भगवान् के उत्तरों से कालोदायी अणगार का समाधान हो गया। उसने विविध तप की आराधना की । जीवन की सांध्य बेला में अनशन कर समाधिपूर्वक मोक्ष प्राप्त किया।
__ प्रस्तुत कथानक में अनेक तलस्पर्शी दार्शनिक प्रश्नों का समाधान किया गया है। ये समाधान भगवान् महावीर के अतिशय ज्ञान के द्योतक हैं । सामान्य मानव इस प्रकार के उत्तर नहीं दे सकता। पुण्डरीक और कण्डरीक
___ ज्ञाताधर्मकथा श्र तस्कंध प्रथम, अध्ययन उन्नीसवें में पुण्डरीककण्डरीक का प्रसंग है। पुष्कलावती विजय में महापद्म सम्राट था। वह श्रमण बना। उसका ज्येष्ठ पुत्र पुण्डरीक राज्य का संचालन करने लगा और कण्डरीक युवराज बना। महापद्म सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। कुछ समय के पश्चात् दूसरे स्थविर का वहाँ आगमन हुआ। कण्डरीक को वैराग्य हुआ। राजा पुण्डरीक ने उसे बहुत कुछ समझाया पर उसने दीक्षा ग्रहण कर लो । कुछ समय के बाद कण्डरीक मनि दाह ज्वर से ग्रसित हो गये। महाराजा पुण्डरीक ने औषधोचार कराया । स्वस्थ होने पर भी कण्डरीक मुनि वहीं जमे रहे । राजा ने नम्र निवेदन किया-श्रमण मर्यादा की दृष्टि से आपका विहार करना उचित है । मुनि ने बिहार किया; किन्तु भोगों के प्रति आसक्त होने से वे पुनः कुछ समय के पश्चात् वहाँ आ गये। पुण्डरीक ने समझाने का प्रयत्न किया। जब वे न समझे तो उन्हें राज्य देकर स्वयं ने श्रमण-वेष धारण कर लिया। तीन दिन की साधना एवं आराधना से पुण्डरीक मुनि तेंतीस सागर की स्थिति का उपभोग करने वाला देव बना
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