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श्रमण कथाएँ २१५ अधर्मास्तिकाय अवस्थिति में सहायक है। कितने ही आधुनिक चिन्तक अधर्म द्रव्य की तुलना या समानता गुरुत्वाकर्षण और फील्ड से करते हैं । किन्तु डॉक्टर मोहनलाल जी मेहता का मन्तव्य है कि गुरुत्वाकर्षण [Gravit tion] और फील्ड [Field] से अधर्म पृथक् और एक स्वतन्त्र तत्व है।
एक बार कालोदायी अणगार ने भगवान् महावीर से जिज्ञासा प्रस्तुत की-भगवन् ! जीव अशुभ फल वाले कर्मों को स्वयं किस प्रकार करता है।
महावीर ने समाधान दिया-जैसे कोई मानव स्निग्ध, सुगन्धित, विषमिश्रित मादक पदार्थ का भोजन करता है, उसे वह भोजन अत्यन्त प्रिय लगता है, उस समय उससे होने वाली हानि से वह विस्मृत हो जाता है। किन्तु उस भोजन का खाने वाले के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि पापों का सेवन करते समय वे अत्यन्त मधुर लगते हैं, पर उससे जो पापकर्म बंधता है, वह बड़ा अनिष्टकारक होता है तथा वह फल पाप कृत्य करने वालों को ही भोगना पड़ता है।
भगवन् ! जीव शुभ कर्मों को किस प्रकार करता है ?- कालोदायी ने पूछा।
महावीर-जैसे कोई मानव औषधिमिश्रित भोजन करता है। वह भोजन तीखा या कटुक होने पर भी बल और वीर्यवर्धक होता है, इसलिए लोग उसे खाते हैं। इसी तरह अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, क्षमा, अलोभ, आदि शुभ कर्मों की प्रवृत्तियाँ मन को मधुर नहीं लगती, पर उनका परिणाम अत्यन्त सुखकर होता है।
___कालोदायी ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की-भगवन् ! दो व्यक्ति हैं, उन दोनों के पास समान उपकरण हैं। एक अग्नि को प्रज्वलित करता है और दूसरा उसे बुझाता है । कृपया फरमाइये कि अग्नि प्रज्वलित करने वाला अधिक पाप का भागी होता है या अग्नि बुझाने वाला ?
भगवान ने कहा- जो अग्नि को प्रज्वलित करता है, वह अधिक आरम्भ और कर्मबन्धन करता है, क्योंकि पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति और बस की हिंसा वह अधिक करता है और अग्नि की हिंसा कम करता है जो अग्नि को बुझाता है, वह अग्नि का आरम्भ अधिक करता है और पृथ्वी
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