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श्रमण कथाएँ
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कोई भी इन वृक्षों से सन्निकट न जाये। जिन व्यक्तियों ने उसके कथनानुसार कार्य किया, वे सकशल रहे और जो उन वृक्षों के वर्ण, गंध, रसादि में आसक्त हो गये, वे मृत्यु के शिकार हुए। संसार भयानक अटवी है । जो इन्द्रियों के विषयों में आसक्त होते हैं, वे दीर्घकाल पर्यन्त संसार की विविध व्यथायें भोगते हैं, अतः साधक को उनसे बचने का संकेत है।
ज्ञातासूत्र में उन जहरीले फलों का नाम 'नन्दी फल' दिया है ।1 उत्तराध्ययन तथा अन्य स्थानों पर 'किपाक फल' दिया है। किंपाकफल अत्यन्त स्वादु होता था। उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति में भी यह उल्लेख है। विष वृक्षों का उल्लेख आगम साहित्य में ही नहीं किन्तु आधुनिक अनुसन्धित्सुओं ने भी ऐसे वृक्षों का उल्लेख किया है। आस्ट्रेलिया में एक विचित्र वनस्पति है, जिसकी डालों में शेर के पंजों के सदृश्य बड़े-बड़े कांटे होते हैं । यदि कोई भूल से घोड़े पर बैठकर उधर से निकले तो वे डालें उस घोड़े पर बैठे हुए व्यक्ति को उसी तरह से उठा लेती है जैसे बाज पक्षी छोटी चिड़ियों को उठा लेता है और वह वृक्ष उस मानव का आहार कर लेता है । अमेरिका के उत्तरी कैरोलीना राज्य में 'वीनस प्लाइट्रप' पौधा पाया जाता है । उस वृक्ष पर कोई भी कीड़ा या पतंगा बैठता है तो पत्ता तत्काल बन्द हो जाता है। जब पौधा उसका रक्त, मांस सोख लेता है, तब पत्ता खुल जाता है और कीड़े का सूखा शरीर नीचे गिर जाता है। इसी तरह 'पाचर प्लान्ट', रेन हेटट्रम्पट, वटर-वार्ट, सनड्यू, उपस, टच-मी-नाट आदि अनेक मांसाहारी वृक्ष हैं, जो जीवित कीड़ों को पकड़ने और भक्षण करने की कला में दक्ष हैं ।
इससे यह सिद्ध है कि आगम युग में इस प्रकार के वृक्ष होते थे, इसमें किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं हैं, क्योंकि आधुनिक युग में भी इस प्रकार के वृक्ष मिलते हैं।
१ ज्ञातासूत्र, श्रुतरकन्ध १, अध्य. १५ २ उत्तराध्ययन, अध्य. १६, गाथा १७ ३ किम्पाको-वृक्षविशेषरतस्य फलान्यतीव सुस्वादूनि ।
--उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र ४४५ ४ मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ : जैन दर्शन और विज्ञान, ले० कन्हैयालाल
लोढा, पृष्ठ ३३०
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