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श्रमण कथाएँ २०५ की दृष्टि से राजा उदायन अर्हत् बनकर निर्वाण प्राप्त करते हैं और देवी प्रकोप से नगर धूलिसात् हो जाता है ।।
उदायन की कथा भगवती में विस्तार से प्राप्त है। उत्तराध्ययन में भी उसका संक्षेप में उल्लेख हुआ है। चूणि व अन्य टीका साहित्य में यह कथा आई है । भगवती की दृष्टि से उदायन का पुत्र अभीचिकुमार निर्ग्रन्थ धर्म का उपासक था। पिता के द्वारा राज्य न मिलने से उसके मन में विद्रोह की भावना पैदा हुई और वह असुरयोनि में उत्पन्न हुआ।
बौद्ध साहित्य में प्रस्तुत कथानक जैन कथानक से बाद में आया है। क्योंकि रुद्रायणावदान प्रकरण पाली साहित्य में नहीं है और न हीनयान परम्परा के अन्य कथा साहित्य में ही है। अवदान कल्पलता और दिव्यावदान ये दोनों महायान परम्परा के ग्रन्थ हैं। ये संस्कृत में हैं और उत्तरकालीन है । एक व्यक्ति दोनों ही परम्परा में दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करे, यह सम्भव नहीं है । सम्भव है जैन साहित्य में आई हुई प्रस्तुत कथा को बौद्ध साहित्यकारों ने अपनाया हो। क्योंकि राजा बिम्बिसार और उदायन का मैत्री-सम्बन्ध भी उसी तरह से कराया गया है जैसे जैन परम्परा में अभयकुमार और आर्द्रककुमार का। हमारी दृष्टि से राजर्षि उदायन जैन परम्परा का ही परम उपासक रहा । सम्भवतः उसके तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बाद में बौद्ध साहित्यकारों ने उसे अपने साहित्य में स्थान दिया हो । जिनपालित और जिनरक्षित
ज्ञाताधर्मकथा, श्रु तस्कन्ध प्रथम,अध्ययन नौ में महावीर तीर्थ में हए जिनपालित जिनरक्षित का वर्णन है । जिनपालित और जिनरक्षित मादी सार्थवाह के पुत्र थे और चम्पा के निवासी थे। उन्होंने अनेक बार समुद्रयात्रा की। जब भी उनके अन्तर्मानस में यात्रा का विचार आता, वे चल
१. बौद्ध साहित्य दिव्यावदान रुद्रायणावदान ३७ २. भगवती शतक १३, उद्द०६ ३. सोवीररायवसभो चइत्ताणं मुणी चरे। उदायणो पव्वइओ, पत्तो गइमणु त्तरं ।
-उत्तरा० १८/४८ ४. आवश्यकचूणि पूर्वार्ध __५. भगवती शतक १३, उद्दे० ६ ६. दिव्यावदान-सम्पादक पी० एल० वैद्य - प्रस्तावना । ७. देखिए आर्द्र ककुमार का प्रसंग।
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