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२०४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
कुम्भकार को सिनपल्ली ले गई और उस स्थान का नाम 'कुम्भकारपक्खेव' रखा गया । 1
बौद्ध साहित्य में उदायन
बौद्ध साहित्य अवदान कल्पलता व दिव्यावदान' में भी राजा उदायत का वर्णन है । चूर्णि साहित्य में उदायन का नाम 'उद्रायण' प्राप्त होता है ।" वैसे ही अवदान कल्पलता में 'उद्रायण' और दिव्यावदान में 'रुद्रायण' नाम प्राप्त होते हैं । दोनों ही परम्परा उसे सिंधु सौवीर देश का
राजा मानती हैं पर राजधानी के नाम में अन्तर है । जैन साहित्य में राज'धानी का नाम 'वोतभय' है तो बौद्ध साहित्य में उसका नाम 'रोरुक' दिया है । दोनों ही परम्परा के अनुसार उसकी महारानी स्वर्ग से आकर उसे प्रतिबुद्ध करती है ।
राजा उदयन का भगवान् महावीर तथा बुद्ध के सम्पर्क में आने का वर्णन पृथक्-पृथक् रूप से मिलता है । भगवान् महावीर स्वयं सिन्धु सौवीर देश में पधारते हैं और राजा को दीक्षा प्रदान करते हैं, जबकि तथागत बुद्ध उसे मगध में आने पर दीक्षा देते हैं। दोनों ही परम्पराओं के अनुसार मुनि उदायन जब अपनी राजधानी में जाते हैं, वहाँ पर दुष्ट अमात्य राजा को भ्रमित कर देते हैं और राजर्षि का वध करवा देते हैं । राजा दीक्षा लेने के पूर्व अपना राज्य जैन दृष्टि से अपने भानजे केशी को देता है तो बौद्ध दृष्टि से अपने पुत्र शिखण्डी को राज्य देता है । दोनों ही परम्पराओं
१. ( क ) सिणवल्लीए कुम्भकारपक्खेवं नाम पट्टणं तस्स नामेणं जातं ।
(ख) सोय अवहरितो अणवराहिंत्ति काउं सिणवल्लीए । कुम्भकारवेक्खो नाम पट्टणं तस्स नामेणं कथं ॥
(ग) शय्यातरं मुनेस्तस्य कुम्भकारं निरागसम् । सासुरी सिनपल्यां प्राग् निन्ये हृत्वा ततः पुरम् ॥ तस्य नाम्ना कुम्भकार कृतमित्याह्वयं पुरम् । तत्र सा विदधे कि वा दिव्य शक्तेर्न गोचरः ॥
२. अवदान ४०
४. उद्दायण राया, तावसो भत्तो.
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- आवश्यकचणि
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-उत्तरा० अ० १८.
- उत्तरा० भावविजय की टीका, पत्र ३८७-२. ३. दिव्यावदान ३७.
- आवश्यकचूणि, पूर्वार्ध, पत्र ३६६.
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