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________________ photo com श्रमण कथाए १६७ और छत्रपलाश चैत्य में विराजे । भगवान् के प्रवचन को सुनने के लिए जनसमूह उमड़ पड़ा। कृतंगला नगरी के सन्निकट हो श्रावस्तो नामक नगर था। वहाँ 'कात्यायन' परिव्राजक का शिष्य 'स्कन्दक' परिव्राजक रहता था । वह चार वेद, इतिहास, निघंट ओर षष्टितंत्र (कापिलीय शास्त्र) में निपुण था। साथ ही गणितशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, आवारशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, छन्द शास्त्र, व्युत्पत्ति शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, ब्राह्मण, नोतिशास्त्र व अन्य दर्शनों में पारंगत था। वहाँ पर 'पिंगल' नामक निर्ग्रन्थ श्रावक रहता था। उसने स्कन्दक परिव्राजक से आक्षेपात्मक भाषा में पूछा मागध ! यह लोक सान्त है या अनन्त है ? जीव सान्त है या अनन्त है ? सिद्धि सान्त है या अनन्त है ? सिद्ध सान्त है या अनन्त है ? किस प्रकार का मरण पाकर जोव संसार को घटाता और बढ़ाता है ? क्या तुम मेरे प्रश्नों का समाधान कर सकोगे ? स्कन्दक परिव्राजक प्रश्नों को सुनते हो श काशील हो उठा। उसे समझ में नहीं आया कि क्या उत्तर दूं। पिंगल ने पुनः पुनः उन प्रश्नों को दोहराया किन्तु उत्तर न आने से स्कन्दक सोचने लगा-इसका सहो समाधान क्या हो सकता है ? उसी समय उसे ज्ञात हआ-छत्रपलाश उद्यान में भगवान् महावीर का आगमन हुआ है, अतः स्कन्दक परिव्राजक त्रिदण्ड, कुण्डी, रुद्राक्षमाला, मृत्पात्र, आसन, पात्र प्रमार्जन का वस्त्र खण्ड, त्रिकाष्ठिका, अंकुश, कुश को मुद्रिका धारण कर कृतंगला की ओर प्रस्थित हुआ। उस समय भगवान् महावीर ने गौतम से कहा-तुम अपने पूर्व परिचित को देखोगे । गौतम को जिज्ञासा पर भगवान ने कहा-पिंगल निर्ग्रन्थ ने स्कन्दक से प्रश्न पूछे हैं, वह उनका उत्तर नहीं दे सका,अतः तापसी उपकरणों को धारण कर यहाँ आने के लिए प्रस्थित हो गया है । गौतम ने पुनः पूछा-भगवन् ! क्या वह आपका शिष्य बनेगा? भगवान् ने स्वीकृतिसूचक संकेत किया। भगवान् और गौतम का वार्तालाप चल ही रहा था कि गौतम को दूर से आता हुआ स्कन्दक परिव्राजक दिखाई दिया । गौतम अपने स्थान से उठे और स्कन्दक के सामने गये और मधुर वाणी में बोले-स्कन्दक! तुम्हारा स्वागत है, सुस्वागत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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