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________________ श्रमण कथाएँ १६३ र्षित करते हुए लिखा है कि इन गाथाओं का प्रतिपाद्य जातक के अठारहवें श्लोक में प्रतिपादित कथा से जान सकते हैं। संक्षेप में कथा का सारांश इस प्रकार है पुरोहित का सम्पूर्ण परिवार प्रव्रजित हो गया। राजा ने उसकी विराट सम्पत्ति अपने पास मंगवा लो। रानी को परिज्ञात होने पर वह समझाने का उपक्रम करने लगी। रानी ने कसाई के यहाँ से मांस मंगवाया और राजप्रासाद में उसे बिखेर दिया। सीधे मार्ग को छोड़कर चारों ओर जाल लगवा दिया। मांस को निहार कर गिद्ध पक्षी आये, उन्होंने खूब माँस खाया। जो गिद्ध पक्षी बुद्धिमान् थे, उन्होंने जाल को देखा और चिन्तन करने लगे-हम मांस खा-खाकर बहुत ही भारी हो चुके हैं, जिससे हम सीधे आकाश में उड़ नहीं सकेंगे, उन्होंने खाये हए मांस को वमन किया और हल्के होकर आकाश में उड़ गये । जो गिद्ध बुद्धिहीन थे, उन्होंने वमन किये हुए मांस को भी खा लिया और अत्यन्त भारी हो गये, जिससे वे सीधे उड़ नहीं सकते थे। वे टेढ़े उड़ने लगे तथा जाल में फंस गये। एक गिद्ध को लाकर अनुचरों ने रानी को दिखाया। वह राजा के सन्निकट पहुँची और उसने झरोखा खोलकर राजा ने कहा-आप भी जरा तमाशा देख । आर्यपुत्र ! जो गीध मांस खाकर पुनः वमन कर रहे हैं, वे गोध आकाश में उड़े चले जा रहे हैं और जो गीध मांस खाकर वमन नहीं कसे रहे हैं, वे मेरे द्वारा लगाये गये जाल में फंस रहे हैं ।। सरपेन्टियर ने प्रस्तुत कथानक में उनपचास से तरेपन तक की गाथा को मूल नहीं माना है। उनका अभिमत है कि वे पाँच गाथायें मल-कथा से सम्बन्धित नहीं है। सम्भव है, जैन कथाकार ने बाद में निर्माण कर यहाँ रखा हो । पर उत्तराध्ययन के व्याख्या साहित्य में इस सम्बन्ध में कहीं भी कोई संकेत नहीं है, अतः सरपेन्टियर का कथन केवल तर्क पर आधारित है, तथ्य पर नहीं। १ जातक संख्या ५०६, पाँचवां खण्ड, पृष्ठ ७५. & The verses from 49 to the end of the chapter certainly do not telong to original legend, but must have been composed by the Jain author. - The Uttaradhyayana Sutra, p. 335. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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