________________
श्रमण कथाएँ
१७७
साथ इसमें अनेक विचारों का सम्मिश्रण हुआ है, किन्तु जैन परम्परा की कथा सरल और संक्षिप्त है और वह बौद्ध कथावस्तु से प्राचीन है । मातंग जातक में ब्राह्मणों के प्रति अधिक कटु भावना व्यक्त की गई है पर जैन कथावस्तु में ऐसा नहीं है। उस युग में ब्राह्मण वर्ग जन्मना जाति के आधार पर अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मानते थे। उसे निराधार बताने के लिए ये कथाएँ सर्चलाइट की तरह उपयोगी हैं।1 जैन और बौद्ध कथाओं में ही समानता नहीं, अपितु गाथाओं में भी अत्यधिक समानता है। उदाहरण के रूप में देखिए
समान गाथाएँ
गाथा
उत्तराध्ययन, अध्ययन १२ मातङ्ग जातक (संख्या ४६७)
श्लोक कयरे आगच्छइ दित्तरूवे, काले विकराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकर दूसं परिहरिय कण्ठे ॥६॥ कयरे तुम इय अदंसणिज्जे, कुतो नु आगच्छसि सम्भवासि काए व आसा इहमागओसि । ओतल्लको पंसुपिसाचको व । ओमचेलगा पंसुपिसायभूया, सङ्कार चोल पटिमुच्च कंठे, गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओसि ।।७॥ को रे तुवं होहिसि
अदक्खिगेय्यो ।।१॥ समणो अहं संजओ बम्भयारी, विरओ धणपयणपरिग्गहाओ । परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले; अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥६॥
1 This nust have also led the writer to include the other story
in the same Jataka; and such an attitude, must have arisen in later times as the effect of sectarian bias.
-Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. 17. [1935-1936] A few Parallels in Jain and Buddhist Works, p. 345, by A. M. Ghatage, M. A.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org