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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
रहने लगा । एक बार हरिकेश मुनि यक्ष-मन्दिर में ध्यानस्थ थे । राजपुत्री भद्रा यक्ष की अर्चना के लिए वहाँ पर आई । मुनि की कुरूपता को देखकर उसका मन घृणा से भर गया और उसने मुनि पर थूक दिया। यक्ष मुनि के अपमान को सहन न कर सका। वह राजकुमारी के शरीर में प्रविष्ट हो गया। अनेक उपचार करने पर भी वह स्वस्थ नहीं हुई। यक्ष ने प्रकट हो कर कहा- इसने मुनि का अपमान किया है, इसे प्रायश्चित्त करना पड़ेगा। राजा ने अपराध को क्षमा माँगी और कन्या के साथ मुनि से विवाह की प्रार्थना की। मुनि ने कहा- मेरा कोई अपमान नहीं हुआ है। मैं किसी भी तरह विवाह नहीं कर सकता। राजा निराश हो गया। उसने ब्राह्मण रुद्रदेव को ऋषि समझकर राजकन्या का विवाह उसके साथ कर दिया। यज्ञशाला में राजकुमारी के विवाह के निमित्त से भोजन बन रहा था। हरिकेशमुनि ने भोजन की याचना की। ब्राह्मणों ने उनको अपमानित कर निकालने का प्रयास किया। मुनि की सेवा में रहने वाला यक्ष ब्राह्मणों के व्यवहार से ऋद्ध हो गया। उसने उन्हें प्रताड़ित किया। राजकुमारी ने ब्राह्मणों को समझाया-ये जितेन्द्रिय हैं, इनका अपमान मत करो। मुनि ने दान का अधिकारी, जातिवाद, यज्ञ का स्वरूप, जलस्नान आदि विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला । मुनि का यह संवाद अत्यन्त शिक्षाप्रद है ।
___ इसी तरह बौद्ध साहित्य के मातंग जातक में एक प्रसंग है-वाराणसी के माण्डव्यकुमार का प्रतिदिन सोलह हजार ब्राह्मणों को भोजन देना; हिमालय के आश्रम में मातंग पण्डित का भिक्षा लेने के लिए आना। उसके पुराने जीर्ण-शीर्ण, मलिन वस्त्रों को देखकर वहां से उसे हटाना, मातंग पण्डित का माण्डव्य को उपदेश देकर दान-क्षेत्र की यथार्थता का प्रतिपादन करना, माण्डव्य के साथी मातंग को पीटते हैं, नगर-देवताओं के द्वारा ब्राह्मणों की दुर्दशा करना, उस समय श्रेष्ठी की कन्या दीट्ठमंगलिका का वहाँ पर आगमन और वहाँ की स्थिति को देखकर सारी बात जान लेना, स्वर्ण-कलश और प्याला लेकर मातंग मुनि के सन्निकट आना, और क्षमायाचना करना, मातंग पण्डित ने ब्राह्मणों को ठीक होने का उपाय किया तथा दीठमंगलिका ने सभी ब्राह्मणों को दान-क्षेत्र की यथार्थता बताई। इस प्रकार दोनों कथाओं में समानता है ।
डा० घाटगे की दृष्टि से बौद्ध परम्परा की कथा विस्तृत होने के
१. मातंग जातक- चतुर्थ खण्ड ४६७, पृष्ठ ५८३-५६७.
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