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श्रमण कथाएँ १७५ और वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण करके कितने ही एक भव में और कितने ही राजकुमार पन्द्रह भव में मोक्ष प्राप्त करेंगे।
पद्मकुमार श्रमण आदि कप्पवडंसिया अध्ययन तीन में पद्मकुमार श्रमण का वर्णन है । चंपा नगरी में राजा कूणिक का राज्य था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। राजा श्रेणिक की एक रानी का नाम काली था। उसके काल नामक पुत्र हुआ । काल की पत्नी का नाम भी पद्मावती था। उसके पद्मकुमार नामक पुत्र हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण कर साधना के द्वारा जीवन को तपाया और सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष में जायेगा। इसी तरह महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनीगुल्म, आनन्द और नन्दन ये सभी श्रेणिक के पौत्र थे, इन्होंने प्रभु महावीर के पास श्रमण धर्म को ग्रहण कर जीवन को पावन बनाया। इन सभी के पिता काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह, महासेनकण्ह थे जो कषाय के वशीभूत होकर नरक में गये और उन्हीं के पुत्र सत्कर्म का आचरण कर देवलोक को प्राप्त करते हैं। उत्थान और पतन का दायित्व मानव के स्वयं के कर्मों पर आधृत है, मानव साधना से भगवान् भी बन सकता है और विराधना से भिखारी भी बन सकता है।
. हरिकेशी मुनि उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन बारह में हरिकेशबल श्रमण का वर्णन है । पूर्वजन्म में जाति-अहंकार करने के कारण हरिकेशबल चाण्डाल कुल में उत्पन्न हए। वे स्वभाव से ही नहीं, शरीर से भी अत्यन्त कुरूप थे। सभी उनसे घृणा करते थे । घृणा और उपेक्षा के कारण वे अधिक कठोर बन गये थे। एक बार वे उत्सव में गये । साथी के अभाव में वे उस भीड़ में अकेले थे । कोई भी लड़का उनसे बोलना पसन्द नहीं करता था। इतने में एक सर्प निकला । उस सर्प को लोगों ने मार दिया। कुछ क्षणों के बाद गोह (अलसिया) निकला, किन्तु उसे किसी ने नहीं मारा। इस घटना से हरिकेशबल सोचने लगे-जो क्रूर होता है, वह, मारा जाता है। किन्तु निविष प्राणी को कोई नहीं मारता । चिन्तन करते हुए उन्हें जातिस्मरण हुआ और वे मुनि बन गये। तप से उनका शरीर कृश हो गया। तिन्दुक वृक्ष निवासी यक्ष, मुनि के दिव्य तप से प्रभावित होकर उनकी सेवा में
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