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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
हाथ उठा ही रह गया। वह पीछे हटकर प्रहार करने के लिए आगे बढ़ा, पर जैसे शरीर में लकवा मार गया हो। हतप्रभ-सा वह सोचने लगा-यह क्या हो गया ? सुदर्शन के धैर्य और तेज के सामने यक्ष का तेज निस्तेज हो गया, वह सत्वहीन होकर भूमि पर धड़ाम से गिर पड़ा और अपने अपराध की क्षमा माँगने लगा। अर्जुन को लेकर सुदर्शन भगवान् के चरणों में पहुँचा । भगवान् का उपदेश सुनकर अर्जुन मालाकार उनके चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा- मेरा उद्धार करो। मैंने जीवन-भर पाप किये हैं। निरपराध स्त्री-पुरुषों का खून किया है। मैं बड़ा पापी हैं, अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है। भगवान् ने उसे दीक्षा दी। वह बेले बेले की तपस्या करता और पारणे के लिए जब वह नगर में जाता तो लोग आक्रोशपूर्वक ढेले फेंकते, ताड़ना-तर्जना करते। किन्तु वह अपनी आत्मा को कसता और स्वर्ण की तरह उज्ज्वल बनाता। अन्त में कर्मों को नष्ट कर वह मुक्त बन गया। बड़ा अद्भुत और अनूठा है यह कथानक । एक क्रूर हत्यारा महापुरुष के सान्निध्य को पाकर पावन बन गया। पारस पुरुष का संस्पर्श लौह रूपी जीवन को एक क्षण में स्वर्ण बना देता है।
बौद्ध साहित्य में भो अंगुलिमाल डाकू का वर्णन आता है जो मानवों की अंगुलियों की माला बनाकर धारण करता था। जिसकी आँखों से खून टपकता था। तथागत बुद्ध को मारने के लिए वह लपका, पर बुद्ध के तेजस्वी व्यक्तित्व से वह हतप्रभ हो गया तथा अहिंसा का पुजारी बन गया । जो कार्य बड़े-बड़े तांत्रिक, यांत्रिक और मांत्रिक नहीं कर सकते वह कार्य एक सन्त कर सकता है । काश्यप आदि श्रमण
काश्यप, क्षेमक, धृतिधर, कैलाश, हरिनन्दन, वारत्तक, सुदर्शन पूर्णभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठित, मेघकूमार ये सभी दीक्षापर्याय पालन कर विपुल पर्वत पर मुक्त हुए। इनके जीवन के सम्बन्ध में विशेष सामग्री का अभाव है, केवल नगर, उद्यान और दीक्षा पर्याय का सूचन है। (अन्तकृत्दशा वर्ग ६, अ. ४-१४) जालि मयालि आदि कुमार
अनुत्तरोपपातिक सूत्र वर्ग १, अध्ययन एक में वर्णन है-जाति, मयालि, पुरुषसेण, उपजालि, वारिषेण, दीर्घदन्तकुमार, लष्टदन्त, वेहल्ल, वेहायस, अभय ये सभी कुमार सम्राट श्रेणिक के पुत्र थे । भगवान् महावीर
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