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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
विचलित हो जाता है । बुद्ध उसे एक बन्दरी दिखाकर उससे पूछते हैंक्या तेरी पत्नी इससे अधिक सुन्दर है ? उसने कहा-वह तो बहुत ही सुन्दर है। उसके पश्चात् बुद्ध उसे त्रायस्त्रिश स्वर्ग की अप्सराओं को दिखाते हैं और पूछते हैं- क्या तेरी जनपदकल्याणी नन्दा इनसे अधिक सुन्दर है ? नन्द निवेदन करता है-भगवन् ! इन अप्सराओं के सामने तो वह कुछ भी नहीं है । बुद्ध उसे प्रतिबोध देते हुए कहते हैं-फिर तुम उसके पीछे क्यों पागल बन रहे हो? तुम भी धर्म की साधना करो। इससे भी अधिक सुन्दर अप्सरायें प्राप्त होंगी। नन्द पुनः श्रमण-धर्म की आराधना करने लगा, किन्तु उसका वैषयिक लक्ष्य मिटा नहीं। एक बार सारिपूत्र आदि अस्सी महाश्रावकों (भिक्षुओं) ने उसका उपहास करते हुए कहायह तो अप्सराओं के लिए साधना कर रहा है । यह सुनकर उसे अत्यन्त ग्लानि हुई और वह साधना में जुट गया ।
मेघकुमार और नन्द दोनों साधना से विचलित हुए, पर घटनाक्रम में जरा सा अन्तर है। श्रमण भगवान् महावीर ने पूर्वभव में भोगी हुई दारुण-वेदना का स्मरण कराया और मानव-जीवन की महत्ता बताकर उसे श्रमण धर्म में स्थिर किया। तो तथागत बुद्ध ने नन्द को आगामी भवों के कमनीय सुखों को बताकर उसे संयम में स्थिर किया। संगामावचर जातक आदि से यह भी स्पष्ट है कि नन्द भी मेघकुमार की तरह प्राक्तन भवों में हाथी था । भंकाई और किंकम
अन्तकृद्दशा में वर्ग ६ अध्ययन प्रथम द्वितीय में मंकाई और किंकम आदि श्रमणों का वर्णन है। मंकाई और किंकम ये दोनों राजगृह नगर के गाथापति थे। इन्होंने भगवान महावीर के त्याग-वैराग्य युक्त प्रवचन को श्रवण कर दीक्षा ग्रहण की । उत्कृष्ट संयम और तप की आराधना कर विपूलगिरि पर्वत पर मुक्त हुए। अर्जुन मालाकार
अन्तकृद्दशा वर्ग ६ अध्ययन तीन में वर्णन है कि राजगृह में अर्जुन
१. (क) संगामावचर जातक संख्या १८२ (हिन्दी अनुवाद) खण्ड २,
पृष्ठ २४८-२५४. (ख) भगवान् महावीर : एक अनुशीलन (देवेन्द्रमुनि) पृष्ठ ४२० से ४२५.
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