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________________ श्रमण कथाएँ १६६ को साधना को आराधना से चमका सकता है । निशीथभाष्य में बालकों को दोक्षा देने का जो निषेध है, वह अयोग्य बालकों के लिए है। दीक्षा बुभुक्षु व्यक्ति नहीं, किन्तु मुमुक्षु व्यक्ति ग्रहण करता है । अलक्ष राजा अन्तकृत्दशासूत्र के वर्ग ६ अध्ययन सोलहवें में महावीर तीर्थ में हुए अलक्ष्य राजा का वर्णन है । अलक्ष नरेश वाराणसी के अधिपति थे। श्रमण भगवान् महावीर के पावन-प्रवचन को श्रवण कर अपने राज्य सिंहासन पर पुत्र को आसीन कर दीक्षा ग्रहण की तथा उत्कृष्ट तप की आराधना कर मोक्ष प्राप्त किया। मेघकुमार श्रमण ज्ञातृधर्म कथा सूत्र के प्रथम अध्ययन में विस्तार के साथ मेघकुमार श्रमण का वर्णन है। मेघकुमार राजा श्रेणिक का पुत्र था। भगवान् महावीर के उपदेश को सुनकर दीक्षित हुआ। सबसे लघु होने के कारण सोने के लिए उसे द्वार के पास स्थान मिला। श्रमणों के आने-जाने का मार्ग होने के कारण मेघमुनि के शरीर से सन्तों के पर टकरा जाते थे। पैरों की धूल से उनके वस्त्र धूल से सन गये । उनको शान्ति से नींद भी नहीं आ सको, जिससे आँखें लाल हो गयीं और शरीर शिथिल हो गया। भगवान् महावीर ने उन्हें उनका पूर्वभव सुनाकर साधना में स्थिर किया। तुलना-नन्द के साथ बौद्ध साहित्य में भी मेघकुमार की तरह सद्यः दीक्षित नन्द का उल्लेख है। वह अपनी नव-विवाहिता पत्नी नन्दा का स्मरण कर १. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृष्ठ ४४४ से ४४६. २. (क) निशीथभाष्य ११, ३५३१/३२. (ख) तुलना कीजिए---महावग्ग, १.४१-६६, पृष्ठ ८०-८१. ३. (क) सुत्तनिपात-अट्ठकथा, पृष्ठ २७२. (ख) धम्मपद-अट्ठकथा, ख ड १. पृ० ६६-१०५. (ग) जातक सं० १८२. (घ) थेरगाथा १५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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