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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
उत्कृष्ट तप करता तो उतनी तपस्या से सात जीव मोक्ष में चले जाते । यह सज्ञान (जिनमत के) तप का महत्व है। आर्द्रकीय मुनि का अन्य तीथियों के साथ वाद
सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रु तस्कन्ध के छठे अध्ययन में आर्द्रक का अन्य तीथियों के साथ वाद-विवाद का वर्णन है। आर्द्रककुमार आर्द्रकपुर के राजकूमार थे ।1 निरुक्तिकार के अनुसार उनके पिता ने राजा श्रेणिक के लिए बहमूल्य उपहार प्रेषित किये । आईककमार ने भी अभयकुमार के लिये उपहार भेजे । आर्द्रक कुमार को भव्य और शीघ्र मोक्षगामी समझकर अभयकुमार ने उसके लिए आत्मसाधनोपयोगी उपकरण उपहार में भेजे । उसे निहारते ही आर्द्र कुमार को पूर्वजन्म का स्मरण हो आया। आर्द्रककुमार का मन वाम-भोगों से विरक्त हो गया। वह अपने देश से निकलकर भारत पहुँचा । दिव्य वाणी ने उसे संकेत किया कि अभी प्रव्रज्या ग्रहण न करे पर वह उस दिव्य वाणी की ओर ध्यान न देकर आर्हत् धर्म में प्रवजित हो गया । भोगावली कर्मोदयवश दीक्षा परित्याग कर उसे पूनः गृहस्थ धर्म में प्रविष्ट होना पड़ा । अवधि पूर्ण होने पर उसने पुनः श्रमण वेश अंगीकार किया और जहाँ भगवान महावीर विराजमान थे, वहां पहचने के लिये चल दिया । पूर्वजन्म का स्मरण होने से उसे भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित धर्म का बोध था। सूत्रकृतांगनियुक्ति के अनुसार आर्द्रक मुनि ने पांच मतवादियों के साथ विवाद किया। वे थे
(१) गोशालक (२) बौद्ध भिक्षु (३) वेदवादी ब्राह्मण (४) सांख्यमत
१. (क) सूत्रकृतांगनियुक्ति, टीका सहित, श्रु० २, अ० ६, प० १३६
(ख) त्रिषष्टि० १०/७/१७७-१७६ (ग) पर्युषणाऽष्टाह्निका व्याख्यान, श्लो० ५ प०६ (घ) डा० ज्योतिप्रसाद जैन ने आर्द्र क कुमार को ईरान के ऐतिहासिक सम्राट कुरुप्प [ई० पू० ५५८-५३०] का पुत्र माना है ।
- भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ६७-६८ २. (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ३८५ से ३८८
(ख) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० १८७, १६०, १६८, १६६
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